उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा मंजूर, कांग्रेस का दावा: नड्डा और रिजिजू हैं इस्तीफे की वजह... बीजेपी का बढ़ा काम

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New Delhi: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूर कर लिया है. संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन की कार्यवाही खत्म होने के बाद. कल देर शाम धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफे की पेशकश की थी, जिसे आज राष्ट्रपति ने स्वीकार करते हुए आगे की कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय को भेज दिया है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्स' पर पोस्ट कर धनखड़ के उत्तम स्वास्थ्य की कामना की. उन्होंने लिखा, 'जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है. मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं.'

कांग्रेस के दावे से फैली सनसनी

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर कांग्रेस के एक दावे ने सनसनी फैला दी है. कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने इशारों-इशारों में राज्यसभा में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू को इस्तीफे के लिए जिम्मेवार ठहराया है. 

जयराम रमेश ने अपने पोस्ट में क्या लिखा. 

“कल दोपहर 12:30 बजे श्री जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की अध्यक्षता की. इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत ज़्यादातर सदस्य मौजूद थे. थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि समिति की अगली बैठक शाम 4:30 बजे फिर से होगी.

शाम 4:30 बजे धनखड़ जी की अध्यक्षता में समिति के सदस्य दोबारा बैठक के लिए इकट्ठा हुए. सभी नड्डा और रिजिजू का इंतज़ार करते रहे, लेकिन वे नहीं आए. सबसे हैरानी की बात यह थी कि धनखड़ जी को व्यक्तिगत रूप से यह नहीं बताया गया कि दोनों मंत्री बैठक में नहीं आएंगे. स्वाभाविक रूप से उन्हें इस बात का बुरा लगा और उन्होंने BAC की अगली बैठक आज दोपहर 1 बजे के लिए टाल दी.

इससे साफ है कि कल दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच ज़रूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया.

अब एक बेहद चौंकाने वाला कदम उठाते हुए, श्री जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. उन्होंने इसकी वजह अपनी सेहत को बताया है. हमें इसका मान रखना चाहिए. लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं.

धनखड़ जी ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ़ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज़ उठाई. उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते 'अहंकार' की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही व संयम की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. मौजूदा ‘G2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की.

वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे. लेकिन उन्हें लगता था कि उनकी भूमिका में लगातार इन बातों की अनदेखी हो रही है. श्री जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है. साथ ही, यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था.”

बीजेपी का काम बढ़ा

धनखड़ ने ऐसे समय में इस्तीफा दिया है जब बीजेपी अपने नए अध्यक्ष की तलाश कर रही है. अब धनखड़ के इस्तीफे से बीजेपी का काम बढ़ गया है. धनखड़ के इस्तीफे के बाद बीजेपी को उनके उत्तराधिकारी की तलाश करनी होगी. बीजेपी इस समय केंद्र में गठबंधन की सरकार चला रही है. उसे चंद्रबाबू नायडू के तेदेपा, नीतीश कुमार के जेडीयू और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ-साथ कई और छोटे दलों का समर्थन हासिल हैं. इसलिए बीजेपी को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार की तलाश में सहयोगी दलों के हितों का भी ध्यान रखना होगा. नए उम्मीदवार में उसे संसदीय परंपराओं की जानकारी के साथ-साथ सभी सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने की क्षमता का भी ध्यान रखना होगा. संसद के मानसून सत्र में सरकार कई विधयेक लेकर आने वाली है, वहीं वन नेशन, वन इलेक्शन, जैसा बिल भी लाया जाना है. इसे पास कराने में नए उपराष्ट्रपति की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. 

अब क्या होगा

भारत में उपराष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति के पद के बाद सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है. संविधान के मुताबिक़ उपराष्ट्रपति का चुनाव संविधान के अनुच्छेद 63 से 71 और उपराष्ट्रपति (चुनाव) नियमावली 1974 के तहत होता है. अब जबकि उपराष्ट्रपति का पद ख़ाली है, तो चुनाव आयोग को नए उप राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था करनी होगी. संविधान में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति के पद को जल्द से जल्द भरना होगा. चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक़ सामान्य परिस्थितियों में अगले उपराष्ट्रपति का चुनाव निवर्तमान उपराष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति के 60 दिनों के भीतर करना होता है. उपराष्ट्रपति का कार्यकाल ख़त्म होने से पहले ही ये चुनावी प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है.
लेकिन ये पद अगर उपराष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफ़े या पद से हटाए जाने या दूसरे कारण से ख़ाली होता है, तो इसे भरने के लिए जल्द से जल्द चुनाव कराने की व्यवस्था की जाती है.

 

 

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