Settle down होंगे झारखंड बीजेपी के कुछ नेता, LOP के साथ प्रदेश अध्यक्ष का चेहरा भी बदलेगा !

लोकसभा चुनाव में हार के लिए जिम्मेवार और पार्टी विरोधी काम करने वाले बीजेपी नेताओं पर कड़ा एक्शन लेने की तैयारी चल रही है. सुस्त नेताओं को भी ठिकाने लगाया जाएगा.

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रांची : विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद बीजेपी झारखंड में संगठन के अंदर बड़ा बदलाव करने वाली है. प्रदेश से लेकर मंडल स्तर तक फेरबदल होने वाला है. झारखंड के विधानसभा प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हेमंता बिस्वा सरमा ने हार की समीक्षा कर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को दिया है. वहीं प्रदेश स्तर पर भी हुई समीक्षा की रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को दी गई है. इन रिपोर्ट में उन नेताओं का भी जिक्र है जिनकी वजह से पार्टी किन-किन विधानसभा सीटों पर चुनाव हारी है. उन नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी जिक्र है जिन्होंने चुनाव में पार्टी विरोधी काम किया या भीतरघात किया. प्रदेश में संगठन के टॉप लीडर्स की कमजोरियों और चुनाव के दौरान की उनकी गतिविधियां भी इस रिपोर्ट में हैं.

 

प्रदेश अध्यक्ष के लिए 4 नामों की चर्चा

 

केंद्रीय नेतृत्व और पार्टी के रणनीतिकार अब राज्य में संगठन को मजबूत करने के लिए नेतृत्व में बदलाव करने वाली है. फरवरी तक गठित होने वाली प्रदेश बीजेपी की नई टीम में कई नये चेहरे दिख सकते हैं. कई बड़े नेता ठिकाने लगाये जा सकते हैं. बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी से मुक्त कर उन्हें विधायक दल का नेता बनाया जा सकता है. वरिष्ठ विधायक सीपी सिंह और नीरा यादव का नाम भी विधायक दल के नेता के लिए जोरशोर से चल रहा है. वहीं प्रदेश अध्यक्ष पद की रेस में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, महामंत्री और राज्यसभा सांसद आदित्य साहू और प्रदीप वर्मा के नाम की भी चर्चा है. कार्यकारी अध्यक्ष रविंद्र राय को ही प्रदेश का पूरा नेतृत्व दिये जाने की भी चर्चा है. इन चारों नेताओं को सांगठनिक कामकाज का अनुभव रहा है. दीपक प्रकाश और रविंद्र राय पहले भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं.

 

बीजेपी के SC, ST, OBC चेहरों ने किया पार्टी को निराश

 

बीजेपी ने 2024 के विधानसभा चुनाव में संगठन के दोनों बड़े पद (प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल का नेता) आदिवासी और दलित नेता को दिये थे. प्रदेश अध्यक्ष का पद बाबूलाल मरांडी और नेता विधायक दल के नेता का पद अमर बाउरी के पास था, लेकिन ये दोनों नेता आदिवासी और दलित वोटरों का वोट बीजेपी को दिलाने में नाकामयाब रहे. बाबूलाल के नेतृत्व में बीजेपी ने आदिवासी सुरक्षित अपनी दोनों सीटिंग सीटें (खूंटी और तोरपा) गंवा दी. 28 में से सिर्फ एक आदिवासी सीट (सरायकेला) बीजेपी जीत पाई. उधर अनुसूचित जाति के वोटरों ने अमर बाउरी को रिजेक्ट कर दिया. बाउरी अपनी खुद की सीट तो हारे ही, कांके विधानसभा सीट भी 40 साल बाद बीजेपी के हाथ से निकल गया. देवघर सीट से भी बीजेपी हाथ धो बैठी. बीजेपी ने सहयोगी आजसू से ओबीसी और कुर्मी वोटरों का वोट हासिल करने की उम्मीद रखी थी, लेकिन सुदेश महतो ने बीजेपी को निराश कर दिया. अब बीजेपी नये सिरे से राज्य में आदिवासी, दलित और ओबीसी वोटरों को बीजेपी की ओर मोड़ने के लिए रणनीति बना रही है. इस बार संगठन के दोनों बड़े पदों में से एक आदिवासी और दूसरा ओबीसी नेता को दिया जा सकता है.

 

नये नेताओं को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी

 

2024 में झारखंड की जनता ने बीजेपी के बड़े आदिवासी, दलित और ओबीसी चेहरों को रिजेक्ट कर दिया. केंद्रीय नेतृत्व अब नये नेताओं में संभावनाएं तलाश रही है. ऐसे नेताओं की तलाश हो रही है जो अपनी जाति का बड़ा चेहरा बनकर वोटरों को प्रभावित कर सकें. इसकी भी संभावना है कि बीजेपी अपने पुराने साथ आजसू को छोड़कर नया विकल्प की तलाश शुरू कर सकता है. कुर्मी और ओबीसी वोटरों में जयराम महतो की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर बीजेपी कहीं सुदेश को बाय कह के जयराम को हाय न कह दे. कुछ राजनीतिक पंडित तो यह भी कह रहे हैं कि बीजेपी अपने पुराने रणनीतिकार ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास को भी झारखंड की राजनीति का चाणक्य बनाकर वापस ला सकती है. चुनाव जीतकर आये नये विधायकों के अंदर कितनी संभावनाएं हैं यह भी देखा जा रहा है. कुछ नये विधायकों को भी नई टीम में बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की संभावना है.

 

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