मोदी के मिशन पर थरूर और ओवैसी, क्या है प्लान ‘पाक बेनकाब’

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पहलगाम आतंकी हमले और 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद भारत सरकार आतंकवाद के खिलाफ अपने 'जीरो टॉलरेंस' के संदेश को वैश्विक पटल पर मजबूती से रखने के लिए इस महीने के अंत में सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को प्रमुख साझेदार देशों में भेजेगी. ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्‍तान में छिपे बैठे आतंकवादी संगठनों की कमर तोड़ने के बाद भारत ने अब पाक के नापाक इरादों को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी बेनकाब करने के लिए यह रणनीति बनाई है. मोदी सरकार की इस रणनीति का हिस्‍सा बीजेपी के सांसद ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों के सांसद शामिल हैं. ये सभी सांसद अलग-अलग देशों में जाकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब करेंगे. चौंकाने वाली बात ये है कि इस बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस के शशि थरूर और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं. सवाल ये उठ रहा है कि थरूर और ओवैसी, मोदी सरकार के कट्टर विरोधी रहे हैं, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बेहद खास मिशन पर इन्‍हें क्‍यों भेज रहे हैं? आखिर मोदी सरकार का 'पाक को बेनकाब' करने का पूरा प्‍लान क्‍या है..
  
PM मोदी ने थरूर को क्यों चुना?

शशि थरूर को करीब से जानने वाले जानते हैं कि उन्‍हें चुन पीएम मोदी ने कितना बड़ा दांव खेला है. संयुक्‍त राष्‍ट्र में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाले शशि थरूर कूटनीति के के बड़े जानकार हैं. ऐसे में पाकिस्‍तान को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर बेनकाब करने में वह अहम रोल निभा सकते हैं. शशि थरूर को संयुक्‍त राष्‍ट्र में काम करने का काफी लंबा अनुभव रहा है. 1978 में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त में अपना करियर शुरू करने वाले थरूर 1981 से 1984 तक सिंगापुर में UNHCR कार्यालय के प्रमुख रहे. इसके बाद 1989 में वे विशेष राजनीतिक मामलों के लिए अवर महासचिव के विशेष सहायक बने, जिसमें यूगोस्लाविया में शांति अभियानों की जिम्मेदारी भी शामिल थी. 2001 में उन्हें संचार और जन सूचना विभाग के अंतरिम प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया, और बाद में 2002 में उन्हें संचार और जन सूचना के लिए अवर महासचिव बनाया गया.  थरूर 2006 में कोफी अन्नान के बाद UN महासचिव की रेस में भी थे. लेकिन वह महासचिव नहीं बन पाए थे. वे इस में दूसरे स्‍थान पर रहे थे. थरूर कूटनीति के अच्‍छे जानकार हैं. वह जानते हैं किस देश की क्‍या फितरत है और उसे कैसे जवाब देना है. थरूर शुरुआत से ऑपरेशन सिंदूर के समर्थक रहे हैं. पीएम मोदी ने उन्‍हें अब बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्‍सा बनाया है, लेकिन थरूर अपना काम काफी पहले से ही शुरू कर चुके हैं. 

ओवैसी को क्यों?

पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के साथ ही असदुद्दीन ओवैसी की पूरी छवि बदल गई है. इस दौरान उनकी एक देशभक्‍त की जो छवि सामने आई, उसकी तारीफ भाजपा नेता भी जमकर कर रहे हैं. शायद ही ऑपरेशन सिंदूर से पहले किसी को उम्‍मीद थी कि ओवैसी, पाकिस्‍तान को इतनी खरी-खरी सुना सकते हैं. ऐसे में पीएम मोदी ने ओवैसी को बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्‍सा बनाकर कोई हैरान नहीं किया है. ओवैसी भारत सरकार के ऑपरेशन सिंदूर के शुरुआत से ही समर्थक रहे हैं. कई टीवी चैनलों पर उन्‍होंने मोदी सरकार के इस कदम का समर्थन किया और पाकिस्‍तान को खरी-खरी सुनाई. कई मौकों पर तो वह पाकिस्‍तानी प्रवक्‍ताओं से भिड़ते हुए भी नजर आए. बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में कौन-सा दल किस देश में जाएगा, यह जानकारी तो अभी सामने नहीं आई है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि मुस्लिम चेहरा होने के नाते ओवैसी को मुस्लिम देशों को साधने में लगाया जा सकता है. दरअसल, अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर ओवैसी की छवि एक पक्‍के मुसलमान की है, ऐसे में जब वह मुस्लिम देशों के सामने भारत का पक्ष रखेंगे, तो उनकी बात में एक अलग वजन होगा. ओवैसी एक राजनेता होने के साथ-साथ काबिल वकील भी हैं, जो अपनी बात को तर्क के साथ रखते हैं. 

प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करने वाले 7 प्रमुख नेता

•    रवि शंकर प्रसाद (भाजपा सांसद)
•    बैजयंत पांडा (भाजपा सांसद)
•    शशि थरूर (कांग्रेस सांसद)
•    संजय झा (जदयू सांसद)
•    कनीमोझी (डीएमके सांसद)
•    सुप्रिया सुले (एनसीपी - शरद पवार गुट सांसद)
•    श्रीकांत शिंदे (शिवसेना सांसद)


नरसिम्हा राव के समय भी एकजुट हुई थी पार्टियां

यह पहला मौका नहीं है, जब सभी भारतीय राजनीतिक दल आपसी राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार कर एकजुट होकर अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर अपनी बात रखने जा रहे हैं. इससे पहले 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठते हुए भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना था. अटल बिहारी वाजपेयी के वहां पहुंचने पर पाकिस्‍तान भी हैरान था.

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