कल्पना की ‘उड़ान’

महिला ही नहीं पुरुषों के एक बड़े वर्ग की भी यही मांग है कि कल्पना सोरेन झारखंड की अगली मुख्यमंत्री बनें. अगर ऐसा होता है तो यह झारखंड के लिए रिकॉर्ड होगा. झारखंड ने 24 साल में आदिवासी और गैर आदिवासी पुरुषों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है. 24 साल बाद जब झारखंड में कोई महिला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगी.

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झारखंड की राजनीति में एक नाम और एक चेहरा बहुत तेजी से उभरकर सामने आया. 18 साल तक राजनीति के साये में रहकर भी राजनीति से दूर रहने वाली एक महिला जो महज चंद महीनों में बन गई झारखंड की सियासत में एक बड़ा नाम और एक बड़ी सख्सियत. जी हां हम बात कर रहे हैं हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की, जिन्होंने झारखंड के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में विपक्ष के रणनीतिकारों के छक्के छुड़ा दिये. कल्पना का एक टीचर से राजनेता बनने का सफर बड़ा दिलचस्प है.

इसे जानने के लिए हमें कुछ साल पीछे जाना होगा. ओडिशा के बारीपदा में मार्च 1985 में कल्पना मुर्मू का जन्म हुआ. पिता अम्पी मुर्मू आर्मी में थे. कल्पना का एक और नाम सोनिया मुर्मू भी था. कल्पना की एक बहन सरला मुर्मू भी है. कल्पना ने सेंट्रल स्कूल से अपनी पढ़ाई की और फिर ओडिशा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थीं. वो इंजीनियरिंग के आखिरी सेमेस्टर में थी. इसी दौरान एक कार्यक्रम में हेमंत सोरन की बड़ी बहन अंजली सोरेन ने कल्पना को देखा और देखते ही उन्हें अपने भाई के लिए पसंद कर लिया. अंजली ने यह बात शिबू सोरेन, रूपी सोरेन समेत परिवार के अन्य सद्स्यों को बताई. हेमंत को भी इसकी जानकारी मिली. फिर वह दिन भी आया जब हेमंत सोरेन अपने दोस्तों के साथ कल्पना को देखने गये. इसके बाद शादी हुई और शादी के बाद हेमंत और कल्पना बोकारो आ गये. हेमंत के बड़े भाई स्वर्गीय दुर्गा सोरेन चाहते थे कि हेमंत नौकरी करें. उन्होंने नौकरी की भी, लेकिन नौकरी हेमंत को रास नहीं आई और फिर वे कल्पना के साथ रांची आ गये. शादी के बाद हेमंत सक्रीय राजनीति में रहे, लेकिन कल्पना ने घर संभाला. दो बच्चे अंश और विश्वजीत हुए... हेमंत सोरेन ने कल्पना के लिए रांची के बरियातू में फर्स्ट मार्क नाम का एक स्कूल खोला, जिसमें कल्पना बतौर प्रिंसिपल काम करने लगीं. स्कूल में शिक्षा के साथ समाजसेवा से भी जुड़ी रहीं. हर साल स्कूल में ब्लड डोनेशन कैंप लगवाती रहीं.

 

18 साल बाद अचानक एक घटना ने उनकी जिंदगी की दिशा मोड़ दी और वो राजनीति में आ गईं और राजनीति में आते ही पूरी तरह छा गईं. सोशल मीडिया से राजनीति के अखाड़े तक बस कल्पना की ही चर्चा है. लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन की स्टार प्रचारक रहीं. विधानसभा चुनाव में भी स्टार प्रचारक कल्पना ने धुंआधार प्रचार किया. गांडेय विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के बावजूद उन्होंने राज्यभर में इंडी गठबंधन के प्रत्याशियों के लिए करीब 100 रैलियां की. महज चंद महीनों में कल्पना जेएमएम की क्राउड पुलर बनकर उभरी हैं.

 

31 जनवरी 2024 को ईडी ने हेमंत सोरेन को लैंड स्कैम मामले में गिरफ्तार किया था. इसके बाद जेएमएम के सामने यह संकट पैदा हो गया कि अब आखिर राज्य और पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा. राज्य का नेतृत्व चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाकर दिया गया और अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी की कमान कल्पना के हाथों में आ गई. कल्पना की राजनीति में विधिवत इंट्री 4 मार्च 2024 को हुई. गिरिडीह में जेएमएम के स्थापना दिवस पर कल्पना ने सक्रीय राजनीति में आने का फैसला लिया. फिर देश में आम चुनाव के साथ-साथ गांडेय में विधानसभा उपचुनाव की घोषणा हुई. कल्पना गांडेय से पार्टी की प्रत्याशी बनाई गईं. इंडी गठबंधन ने उन्हें अपना स्टार प्रचारक बनाया. जब कल्पना मंच पर आईं तब लोगों को पता चला कि उनमें नेतृत्व की अद्वितीय क्षमता है. वो एक अच्छी रणनीतिकार के साथ-साथ प्रखर वक्ता भी हैं. कल्पना गांडेय से चुनाव जीतकर विधायक बनीं. हेमंत के जेल से बाहर आने तक पार्टी को संभाला. चंद महीनों में ही कल्पना सोरेन ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ एक लंबी लकीर खींच दी है.

 

चुनाव प्रचार के दौरान कल्पना सोरेन की रैली में उमड़ रही भीड़ बीजेपी नेताओं के लिए चिंता बन गई. उन्होंने पूरे चुनाव के दौरान हर दिन 4 से 7 सभाओं को संबोधित किया. कल्पना सोरेन के समर्थन उमड़ रहे जन सैलाब को देखते हुए बीजेपी और एनडीए के अधिकांश नेताओं ने कल्पना सोरेन के खिलाफ सीधा हमला बंद कर दिया. कल्पना ने अपनी रैलियों में सधे राजनेता की तरह समर्थकों का उत्साह बढ़ाया. मंईयां सम्मान समेत सरकार की योजनाओं की प्रभावी तरीके से वोटरों के बीच रखा. हर चुनावी सभा में उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरनाक हैं.

 

कल्पना सोरेन के ससुर और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन पहली बार चुनाव प्रचार अभियान से पूरी तरह दूर रहे. पार्टी के पोस्टर-बैनर पर उनकी तस्वीरें प्रमुखता से लगी रही, लेकिन बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य की वजह से चुनावी सभाओं से उनकी दूरी बनी रही. कल्पना सोरेन ने गुरूजी की कमी को दूर करने की पूरी कोशिश की. वे इस चुनाव में हेमंत सोरेन के बाद झामुमो की सबसे बड़ी और लोकप्रिय स्टार प्रचारक रहीं.

 

महज चंद महीने में कल्पना ने लोकप्रियता की बुलंदियों को छू लिया है. सभाओं में जब वो गरजती हैं तो विरोधियों को सांप सूंघ जाता है. अपनी प्रखर वाणी और निडरता से कल्पना महिला वर्ग के बीच अपना प्रभाव बना चुकी हैं. महिलाओं के जेहन में कल्पना की एक नेता के साथ-साथ आधुनिक, पारिवारिक और शिक्षित महिला के रूप में छवि बनी है. महिला ही नहीं पुरुषों के एक बड़े वर्ग की भी यही मांग है कि कल्पना सोरेन झारखंड की अगली मुख्यमंत्री बनें. अगर झामुमो उन्हें सीएम बनाना चाहे तो इंडी गठबंधन को भी कोई ऐतराज नहीं होगा और अगर ऐसा होता है तो यह झारखंड के लिए रिकॉर्ड होगा. झारखंड ने 24 साल में आदिवासी और गैर आदिवासी पुरुषों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते देखा है. 24 साल बाद जब झारखंड में कोई महिला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगी, तब राज्य की महिलाओं के लिए इससे बड़ी सम्मान और गर्व की बात क्या होगी. अगर युवा कल्पना सीएम की कुर्सी पर बैठती हैं तो निश्चित रूप से अपने जोश, जुनून और ज्जबे से झारखंड को एक नई दिशा और दशा देंगी. झारखंड की तकदीर और तस्वीर बदलेगी. अबुआ दिशोम, अबुआ राज का सपना साकार होगा...

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