बीजेपी क्यों नहीं चाहती सूचना आयुक्तों की नियुक्ति ?

झारखंड में सूचना आयोग 5 साल से डिफंक्ट है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के कारण सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं हो रही है. आखिर बीजेपी सूचना आयुक्तों की नियुक्ति क्यों नहीं चाहती है ?

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रांची : भ्रष्टाचार को रोकने, लोकतंत्र को मजबूत करने और आम नागरिकों को सशक्त बनाने वाला सूचना का अधिकार कानून झारखंड में पिछले 5 सालों से लाचार है. सरकार की कार्यशैली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने वाला आरटीआई यहां अब बस फाइलों में है. 8 मई 2020 से झारखंड में सूचना आयोग डिफंक्ट है. झारखंड में सूचना के आरटीआई को कमजोर करने में सबसे बड़ा हाथ यहां की विपक्षी पार्टी बीजेपी का है. बीजेपी की जिद ने अबतक सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने दी है. दरअसल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के नहीं होने के कारण सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं हो रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष के लिए नामित किया था, लेकिन उन्हें करीब 4 साल तक सदन में नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं मिली. इसके बाद बीजेपी ने अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष नामित किया, उन्हें सदन में मान्यता मिली. सूचना आयुक्तों की बहाली की दिशा में पहल भी हुई, लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण मामला लटक गया.

 

सरकार गठन के 2 महीने बाद भी बीजेपी ने नहीं दिया नेता प्रतिपक्ष

 

राज्य में सरकार बने करीब 2 महीने हो चुके हैं, लेकिन अबतक बीजेपी ने विधायक दल के नेता का चयन नहीं किया है. सूचना आयुक्त के पदों पर नियुक्ति को लेकर झारखंड हाई कोर्ट के वकील शैलेश पोद्दार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. 7 जनवरी 2025 को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने बीजेपी को 2 सप्ताह के भीतर विपक्ष के नेता को नामित करने का आदेश दिया. तीन हफ्ते हो चुके हैं, लेकिन अबतक बीजेपी ने नेता प्रतिपक्ष का चयन नहीं किया है. 4 मार्च को मामले की अगली सुनवाई है.

 

अपील और शिकायतों पर ठप है सुनवाई

 

झारखंड में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के पद खाली होने के कारण सुनवाई पूरी तरह ठप है और आयोग में दर्ज सभी अपील व शिकायतें भी अरसे से लंबित हैं. हर दिन जिला स्तर से करीब 100 अपील याचिका ऑनलाइन और ऑफलाइन आयोग के दफ्तर में पहुंचती है. आयुक्तों की नियुक्ति के इंतजार में ये सारी अपील यूं ही आयोग में पड़ी हुई है. वहीं राज्य सरकार के द्वारा सूचना आयुक्तों के खाली पदों को भरने के लिए अब तक तीन बार आवेदन मांगे जा चुके हैं, लेकिन नियुक्ति नहीं हुई है.

 

20166 अपील हैं सूचना आयोग में लंबित

 

8 मई 2020 को जब सूचना आयोग डिफंक्ट हुआ था उस वक्त सूचना आयोग में 7657 अपील और 71 कंप्लेन लंबित थे. उसके बाद से अबतक 12509 अपील और 298 कंप्लेन सूचना आयोग को प्राप्त हुए हैं. सभी अपील और कंप्लेन अब सिर्फ एक नंबर बन चुके हैं. नंबर डालकर उन्हें फाइलों में डाल दिया गया है. हर साल 2000 से 2700 अपील आयोग पहुंचे हैं. 2020 में 2334 अपील और 59 कंप्लेन आयोग पहुंचे थे. वहीं 2021 में 2625 अपील और 54 कंप्लेन, 2022 में 2734 अपील और 52 कंप्लेन, 2023 में 2366 अपील और 104 कंप्लेन, 2024 में 2215 अपील और 25 कंप्लेन आयोग में ऑनलाइन या ऑफलाइन पहुंचे हैं. 2025 में एक महीने के अंदर 152 अपील और 4 कंप्लेन आ चुके हैं. इनमें से कई अपील और आवेदन काफी इंपोर्टेंट भी होंगे. जबतक सूचना आयुक्त की नियुक्ति होगी और इन मामलों की सुनवाई होगी तबतक काफी देर हो चुकी होगी. बीजेपी सरकार, सिस्टम और उसके कामकाज के तरीके पर सवाल खड़ी करती रही है. सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने से सरकार और सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को तो राहत ही है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सूचना आयुक्तों की बहाली नहीं होने से बीजेपी को आखिर क्या फायदा है. जागरूक विपक्ष बीजेपी आखिर क्यों सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने देना चाह रही है ? क्यों वह विधायक दल के नेता चुनने में देर कर रही है.

 

 

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