उग्रवादी संगठन जेजेएमपी के खात्मे के बाद गुमला पुलिस का अगला लक्ष्य कुख्यात झांगुर गुट था. लगातार दबिश के बीच इस गुट के सरगना और 50 से अधिक संगीन मामलों में वांछित रामदेव उरांव के आत्मसमर्पण करने की चर्चाएं तेज हैं. बताया जा रहा है कि नरसंहार, अपहरण, हत्या, रंगदारी और गोलीबारी जैसी कई घटनाओं का मास्टरमाइंड रामदेव उरांव ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है. हालांकि एसपी हारिस बिन जमां ने उसकी गिरफ्तारी या आत्मसमर्पण की आधिकारिक पुष्टि से इनकार किया है.
केंद्रीय खुफिया विभाग के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर जानकारी दी कि रांची से आई एक विशेष टीम की मौजूदगी में रामदेव उरांव को रांची लाया गया है और उससे पूछताछ जारी है. इलाके में इस खबर के फैलते ही चर्चा का बाजार गर्म हो गया है. व्यवसायियों और लेवी देने वालों में भी राहत और सुकून का माहौल है. यदि आधिकारिक पुष्टि होती है, तो इसे गुमला पुलिस के लिए एक बड़ी सफलता माना जाएगा.
रामदेव उरांव वर्ष 2002 में झांगुर गुट के तत्कालीन सुप्रीमो मार्कुस मुंडा की हत्या कर संगठन का प्रमुख बना था. इसके बाद उसने बिशुनपुर और आसपास के उन क्षेत्रों में अपना दबदबा स्थापित कर लिया, जहां पहले भाकपा माओवादी सक्रिय थे. वह माओवादियों से भी टक्कर लेता रहा. उसके खिलाफ बिशुनपुर, गुरदरी, घाघरा और चैनपुर थाना क्षेत्रों में हत्या, आर्म्स एक्ट, आगजनी और अन्य गंभीर मामलों सहित 50 से अधिक केस दर्ज हैं, जिनमें 17 मामलों में वह स्थायी वारंटी है. केवल बिशुनपुर थाना में ही उसके ऊपर 40 से अधिक मामले दर्ज हैं.
एके-56 जैसे आधुनिक हथियारों के सहारे वह वर्षों तक पुलिस की गिरफ्त से बचता रहा. बताया जाता है कि उसने बिशुनपुर और आसपास के दुर्गम जंगलों में मजबूत नेटवर्क बना रखा था. 2005, 2009, 2013, 2018, 2021 और 2025 में पुलिस तथा केंद्रीय सुरक्षा बलों ने उसके खिलाफ बड़े अभियान चलाए, लेकिन हर बार वह पहाड़ों और जंगलों के सहारे भाग निकलता था. ग्रामीणों के बीच उसकी दहशत इतनी थी कि लोग उसके खिलाफ शिकायत करने से भी कतराते थे. लगभग 23 वर्षों से रामदेव उरांव ने पूरे क्षेत्र में आतंक का माहौल बनाए रखा था.

