When will you come back रघुवर जी ?

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'वी विल कम बैक' यही कहा था पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 10 जनवरी को, जब वे बीजेपी में दोबारा शामिल हो रहे थे. एक महीने से अधिक हो चुका है, लेकिन रघुवर दास अभी तक बीजेपी में कमबैक नहीं कर पाये हैं. एक महीने में बीजेपी ने उन्हें संगठन में न कोई पद और न कोई जिम्मेवारी दी है. पिछले एक महीने से वे साधारण कार्यकर्ता बनकर बैठे हैं. राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर की राजनीति करने वाले रघुवर दास फिलहाल क्षेत्रीय राजनीति में लगे हुए हैं. जमशेदपुर के सिदगोड़ा सूर्य मंदिर में फिर उनका दखल हो गया है और फिर से वहां इंट्री फीस वसूली शुरू हो गया है. फिलहाल वे खाली समय में विधायक बहू के एमएलए फंड का हिसाब किताब देख रहे हैं. घर पर और सिदगोड़ा सूर्य मंदिर में समर्थकों-कार्यकर्ताओं का दरबार लग रहा है.

24 दिसंबर 2024 को रघुवर दास ने ओडिशा के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिया था. सियासी गलियारे में चर्चा शुरू हुई कि रघुवर दास की अब झारखंड या राष्ट्रीय राजनीति में ग्रैंड इंट्री होगी. बीजेपी उन्हें बड़ा पद देकर बड़ी जिम्मेदारी देगी. राष्ट्रीय संगठन में नहीं तो कम से कम प्रदेश में अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी जरूर मिलेगी. इस्तीफे के बाद रघुवर दास ने खुद ऐसा माहौल तैयार किया कि लोगों की जिज्ञासा बढ़ने लगी कि आखिर झारखंड में होने क्या वाला है. हर इंटरव्यू और कार्यक्रम में रघुवर कह रहे थे कि वे बीजेपी के साधारण कार्यकर्ता हैं. उन्हें पद की कोई लालच नहीं है. वे बीजेपी में एक साधारण कार्यकर्ता ही बना रहना चाहते हैं, और देखिये कैसे भगवान और पार्टी आलाकमान ने उनकी सुन ली. एक महीने से बिना किसी पद के संगठन की सेवा में लगे हुए हैं.

10 जनवरी को रांची में बीजेपी की सद्स्यता लेने के बाद रघुवर दास दोबारा पार्टी के प्रदेश स्तर के किसी कार्यक्रम में नजर नहीं आये. न रांची में प्रदेश के नेताओं से मिलने पहुंचे और न ही दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचे. हां नागपुर में आरएसएस के एक कार्यक्रम में जरूर नजर आये. बीजेपी के नेता ने कहा कि रघुवर दास को पार्टी अब कोई पद नहीं दे जा रही, क्योंकि रघुवर से पार्टी आलाकमान काफी नाराज है. दरअसल रघुवर दास की प्रेशर पॉलिटिक्स करने की पुरानी आदत रही है. विधानसभा चुनाव से पहले जमशेपुर पूर्वी के टिकट को लेकर भी उन्होंने दिल्ली में खूब प्रेशर बनाया था. जेपी नड्डा के पास अपना इस्तीफा रख आये थे. चुनाव के कारण उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया. चुनाव के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया.

बीजेपी में दोबारा शामिल होने के बाद भले ही रघुवर दास ने यह कहा कि उन्हें पद का लोभ नहीं है, लेकिन पीछे से उन्होंने फिर प्रेशर पॉलिटिक्स का गेम शुरू कर दिया. 11 जनवरी को जेएमएम चीफ शिबू सोरेन का जन्मदिन था. रघुवर दास रांची में शिबू सोरेन के आवास पर पहुंचे और उन्हें जन्मदिन की बधाई. आत्मियता भरे उन लम्हों की तस्वीरें में भी उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. उसी दिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का भी जन्मदिन था, लेकिन रघुवर ने उन्हें घर जाकर बधाई नहीं दी. इतना ही नहीं इसके बाद रघुवर दास नागपुर में आरएसएस के एक कार्यक्रम में पहुंचे, जहां उन्होंने मोदी-शाह की एंटी लॉबी के प्रमुख नेता नितिन गडकरी से मुलाकात कर फोटो सोशल मीडिया में पोस्ट किया. रघुवर दास ने हाल के दिनों में ऐसे ही कई और काम किये हैं, जिससे उन्होंने अपने लिए नेगेटिव मार्किंग बढ़ा ली है. 

रघुवर दास खरमास में बीजेपी में शामिल हुए थे. महज 4 दिन बचा था खरमास खत्म होने में. ऐसे में लग रहा था कि केंद्रीय नेतृत्व महज 1-2 दिन में रघुवर को बड़ी जिम्मेदारी दे देगी, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. वहीं रघुवर के बीजेपी में शामिल होने के दौरान कोई बड़ा नेता भी रांची नहीं पहुंचा था. पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा समेत सभी आदिवासी लीडरों ने रघुवर दास के कार्यक्रम से किनारा कर लिया था. दरअसल रघुवर दास को झारखंड बीजेपी के आदिवासी नेता उस समय से पसंद नहीं कर रहे हैं, जब उन्होंने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन की कोशिश की थी. बीजेपी के आदिवासी नेताओं को इससे काफी नुकसान उठाना पड़ा था. रघुवर के कार्यों का हिसाब आदिवासी नेताओं और विधायकों को जनता को देना पड़ रहा था. बीजेपी के कुछ नेता यह भी कहते हैं कि जब-जब रघुवर दास पार्टी में पावर में आये तब-तब संगठन को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. केंद्रीय नेतृत्व ने भी शायद रघुवर दास की वापसी से होने वाले इफेक्ट और साइड इफेक्ट का आकलन कर रखा है. यही वजह है कि बीजेपी रघुवर को कह रही है यू विल वेट..

 

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