वैज्ञानिक प्रबंधन से होगा मानव-हाथी संघर्ष का समाधान: बैद्यनाथ राम

  • Posted on August 13, 2024
  • देश
  • By Bawal News
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फसल कटाई का समय अक्सर हाथियों के प्रवास के समय से मेल खाता है, जिससे किसानों और हाथियों के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है.

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बेंगलुरु : झारखंड के शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम ने बेंगलुरु में मानव- हाथी संघर्ष पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि हाथी न केवल वन्यप्राणी साम्राज्य की प्रमुख प्रजाति है, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी पूजनीय जीव माना जाता है, लेकिन कुछ समय से मानव और हाथी के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई है, जिसके कारण अप्रिय स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं और इससे दोनों पक्षों की जान-माल की हानि हो रही है. उन्होंने कर्नाटक की वन्यजीव प्रबंधन प्रणाली प्रशंसा करते हुए कहा कि कर्नाटक में वैज्ञानिक तरीके से वन और वन्यजीव प्रबंधन की एक लंबी और गौरवशाली परंपरा रही है. कर्नाटक सरकार द्वारा मानव- हाथी संघर्ष की बढ़ती घटनाओं पर चर्चा करने के लिए विश्व के प्रमुख विशेषज्ञों को एक साथ लाने की पहल सराहनीय है.

झारखंड में करीब 700 हाथियों का बसेरा

शिक्षा मंत्री ने कहा कि झारखंड वनों की भूमि है. यहां 29 प्रतिशत से अधिक भूमि वनाच्छादित है. झारखंड एक लैंडलॉक राज्य है, जहां हाथियों की एक स्वस्थ आबादी विचरण करती है. यह राज्य चारों तरफ से हाथियों के प्रवास अनुकूल क्षेत्र वाले राज्यों से भी घिरा हुआ है और East-Central Elephant Landscape के रूप में चिह्नित है. हाल में हुए गणना से पता चलता है कि झारखंड में लगभग 600 से 700 हाथियों का बसेरा है. हमारे पास संतोषजनक वन क्षेत्र है, लेकिन हमारे पास बड़े वन क्षेत्र नहीं हैं. भूमि खंडित है और जानवरों के गलियारे टूट चुके हैं. फसल कटाई का समय अक्सर हाथियों के प्रवास के समय से मेल खाता है, जिससे किसानों और हाथियों के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है.

मानव हाथी संघर्ष से सालाना 70 करोड़ की हानि

कहा कि झारखंड के लोगों का जीवन प्रकृति और उसके संरक्षण के साथ अटूट रूप से जुड़ा है, लेकिन झारखंड भी मानव- वन्यप्राणी संघर्ष के वैश्विक रुझान से अछूता नहीं है और हम अपने तरीके से इससे निपट भी रहे हैं. बीते वर्षों में मनुष्य और हाथियों दोनों ने अपनी जान गंवाई है. मानव-हाथी संघर्ष से संपत्ति और कृषि की औसत वार्षिक हानि लगभग 60 से 70 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है, जिसकी प्रतिपूर्ति झारखंड सरकार मुआवजे के रूप में करती है. अवैध शिकार की घटनाएं तो कम हैं, लेकिन झारखंड में हाथियों की मृत्यु के मुख्य कारण रेल से दुर्घटना और बिजली का करंट है. 

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