Ranchi: झारखंड कैबिनेट से पेसा एक्ट की नियमावली को मंजूरी मिलने के दो दिन बाद अब इस फैसले पर आदिवासी संगठनों की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी हैं. राज्य सरकार के इस कदम को लेकर आदिवासी समाज में संतोष के साथ-साथ सतर्कता भी देखी जा रही है. संगठन मानते हैं कि यह फैसला ग्राम सभा को मजबूत करने की दिशा में अहम है, लेकिन इसके क्रियान्वयन और नियमों की व्याख्या को लेकर कई सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं.
केंद्रीय सरना समिति ने सरकार को दी बधाई
इसी क्रम में केंद्रीय सरना समिति ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पेसा नियमावली को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट की. समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि पेसा कानून वर्षों से लंबित था और अब इसकी नियमावली बनना सकारात्मक पहल है. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज लंबे समय से इस कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग कर रहा था.
नियमावली में बदलाव पर जताई चिंता
हालांकि, सरना समिति ने नियमावली को लेकर कुछ गंभीर आशंकाएं भी जाहिर की हैं. फूलचंद तिर्की ने कहा कि यदि पेसा नियमावली में किसी भी तरह से बाहरी तत्वों, मिशनरियों या किसी विशेष वर्ग को लाभ पहुंचाने के प्रावधान जोड़े गए हैं, तो इसका विरोध किया जाएगा. उनका कहना है कि पेसा एक्ट का मूल उद्देश्य आदिवासी परंपरा, संस्कृति और ग्राम सभा की सर्वोच्चता को सुरक्षित रखना है.
ग्राम सभा की भूमिका कमजोर न हो
आदिवासी संगठनों का कहना है कि नियमावली लागू करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्राम सभा के अधिकारों में कोई कटौती न हो. जमीन, जंगल और जल से जुड़े फैसलों में ग्राम सभा की सहमति सर्वोपरि रहे. किसी भी प्रशासनिक हस्तक्षेप से ग्राम सभा की स्वायत्तता प्रभावित नहीं होनी चाहिए.
क्रियान्वयन पर रहेगी पैनी नजर
सरना समिति समेत अन्य संगठनों ने साफ किया है कि वे नियमावली के जमीनी क्रियान्वयन पर नजर बनाए रखेंगे. यदि पेसा कानून की मूल भावना से छेड़छाड़ की गई या आदिवासी अधिकारों को कमजोर किया गया, तो आंदोलन का रास्ता अपनाया जाएगा.
राजनीतिक और सामाजिक असर पर चर्चा तेज
कैबिनेट से मंजूरी के बाद अब पेसा नियमावली झारखंड की राजनीति और सामाजिक विमर्श का अहम मुद्दा बन गई है. आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि सरकार इसे किस तरह लागू करती है और क्या यह आदिवासी समाज के सशक्तिकरण का वास्तविक माध्यम बन पाता है या नहीं.



