दो गुरुओं के संघर्ष की कहानी, शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी का ऐसा है सियासी सफरनामा
- Posted on January 11, 2025
- राजनीति
- By Bawal News
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झारखंड के दो बड़े आदिवासी नेताओं का आज जन्मदिन है. दोनों ने संघर्ष कर राजनीति में अपनी पहचान बनाई है. दोनों केंद्रीय मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री बने. शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी के जन्मदिन की शुभकामनाएं.
रांची : झारखंड के दो बड़े राजनीतिक हस्तियों का आज जन्मदिन है. जेएममएम सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन आज जहां आज अपना 81 वर्ष के हो गये, वहीं झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और बीजेपी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी अपना 66वां बर्थडे मना रहे हैं. दोनो नेता अलग-अलग पार्टी के हैं. दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग है, लेकिन दोनों ने संघर्ष कर खुद को राजनीति के शीर्ष शिखर पर स्थापित किया. बाबूलाल मरांडी एक बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, जबकि शिबू सोरेन तीन बार प्रदेश के सीएम रहे. एक बात जो दोनों में कॉमन है वह है शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी दोनों आदिवासी समुदाय से हैं. दोनों ही नेता शिक्षक से राजनेता बने हैं. तो पढ़िये शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी के संघर्ष की कहानी.
पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने छेड़ी महाजनों के खिलाफ मुहिम
शिबू सोरेन का आंदोलन से दिशोम गुरु बनने का सफर बड़ा दिलचस्प है. रामगढ़ के नेमरा गांव में एक साधारण परिवार में जन्मे शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन किया था. उन्होंने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को मजबूती दी. आंदोलन का नेतृत्व किया. राज्य के सर्वमान्य आदिवासी नेता बने. तीन बार थोड़े-थोड़े समय के लिए राज्य के मुख्यमंत्री बने. शिबू सोरेन का जन्म नेमरा गांव में सोबरन मांझी के घर हुआ था. उनके पिता सोबरन मांझी शिक्षक थे. सोबरन सोरेन महाजनों द्वारा आदिवासियों की जमीन हड़पने का कड़ा विरोध करते थे. इसी कारण उनकी हत्या कर दी गई. शिबू सोरेन तब महज 13 साल के थे. पिता की हत्या के बाद महजनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने धनकटनी आंदोलन शुरू किया. धीरे धीरे उनका प्रभाव आदिवासी समाज में बढ़ने लगा था.
धनकटनी आंदोलन ने शिबू सोरेन को बनाया दिशोम गुरु
धनकटनी आंदोलन से शिबू सोरेन को आदिवासियों के बड़े नेता बन गये और उन्हें दिशोम गुरु (देश का गुरु) की उपाधि मिली. इसके बाद उन्होंने अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर बिनोद बिहारी महतो और कॉमरेड एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की. 1980 में पहली बार दुमका से सांसद बने. इसके बाद उन्होंने साल 1986, 1989, 1991 और 1996 में लगातार जीत हासिल की. 2004, 2009 और 2014 में वे फिर से दुमका संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतने में सफल रहे. शिबू सोरेन 8 बार दुमका से लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बने. वे केंद्र की नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री भी बने. तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने. फिलहाल शिबू सोरेन राज्यसभा सांसद हैं और झारखंड सरकार के समन्वय समिति के अध्यक्ष भी हैं.
स्कूल के टीचर की नौकरी छोड़ राजनीति में आये बाबूलाल
बाबूलाल मरांडी के एक शिक्षक से राज्य का सीएम बनने का सफर भी संघर्ष से भरा हुआ है. 11 जनवरी 1958 गिरिडीह जिले के कोदाईबांक गांव में उनका जन्म हुआ था. गिरिडीह में रहकर ही उन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की. इसके बाद रांची विश्वविद्यालय में भूगोल में एमए की डिग्री हासिल की. फिर शिक्षक के रूप में अपने प्रारंभिक जीवन की शुरुआत की. इस दौरान वे आरएसएस से भी जुड़े. फिर उन्होंने शिक्षक की नौकरी छोड़ दी और सक्रिय राजनीति में आ गये. बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में ही 1998 के लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंड में पड़ने वाले 14 लोकसभा सीटों में से 12 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी. इसके बाद बाबूलाल मरांडी को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के कैबिनेट में भी जगह मिली थी. जब झारखंड अलग राज्य बना तो बाबूलाल मरांडी को राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन डोमिसाइल विवाद की वजह से 2003 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. पार्टी में उपेक्षा के कारण उन्होंने 2006 में बीजेपी छोड़ दिया और अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बनाई. उनकी पार्टी झाविमो में कई बड़े नेता शामिल हुए. पार्टी ने 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में अच्छी-खासी सीटें हासिल की, लेकिन हर बार चुनाव के बाद उनके विधायक टूटते गये. आखिरकार 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया. बाबूलाल मरांडी को राज्य का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है. चार बार लोकसभा के सांसद भी रह चुके हैं.
फिलहाल बाबूलाल मरांडी धनवार विधानसभा सीट से विधायक और झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं.
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