रिपोर्ट : फास्ट ट्रैक कोर्ट निपटा रहे 83% मामले, सामान्य अदालतों में निपटारे की दर 10%

रिपोर्ट के मुताबिक सभी फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट को संचालित रखने के अलावा अगर 1000 नई विशेष अदालतों का गठन नहीं हुआ तो शायद लंबित मामले कभी खत्म नहीं होंगे.

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रांची : देश के ज्यूडिशियल सिस्टम में फास्ट ट्रैक कोर्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इन अदालतों ने लोगों का न्यायिक व्यवस्था पर भरोसे को मजबूत किया है. विशेष त्वरित अदालतों के कामकाज पर इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की रिपोर्ट ‘फास्ट ट्रैकिंग जस्टिस : रोल ऑफ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स इन रिड्यूसिंग केस बैकलॉग्स’ के मुताबिक इन विशेष अदालतों में मामलों के निपटारे की दर 83 प्रतिशत रही, जबकि अन्य अदालतों में सिर्फ 10 प्रतिशत मामले निपटे. रिपोर्ट के मुताबिक सभी फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट को संचालित रखने के अलावा अगर 1000 नई विशेष अदालतों का गठन नहीं हुआ तो शायद लंबित मामले कभी खत्म नहीं होंगे. अगर साल भर के भीतर सभी लंबित मामलों का खात्मा करना है तो हर तीन मिनट में बलात्कार या पोक्सो के एक मामले को निपटाना होगा. रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ दो प्रतिशत मामलों के निपटारे की दर के साथ पश्चिम बंगाल देश में सबसे नीचे है. राज्य में 123 विशेष अदालतों की स्वीकृति के बावजूद महज तीन विशेष अदालतें ही काम कर रही है.

 

रेप और यौन शोषण पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरी FTSC

 

अदालती मामलों में तारीख पर तारीख संस्कृति काफी प्रसिद्ध है. इस बीच फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स मामलों के निपटारे की अपनी रफ्तार के कारण रेप व यौन शोषण पीड़ितों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरी हैं. इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार जहां पूरे देश की अदालतों में रेप व पॉक्सो के मामलों के निपटारे की दर 2022 में सिर्फ 10 प्रतिशत थी, वहीं इन विशेष त्वरित अदालतों में यह दर 83 प्रतिशत रहीं, जो 2023 में बढ़कर 94 प्रतिशत तक पहुंच गई. रिपोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि निर्भया फंड में पड़ी अप्रयुक्त राशि के उपयोग से दो साल में अतिरिक्त विशेष अदालतें गठित की जा सकती हैं. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इन अतिरिक्त त्वरित विशेष अदालतों का गठन नहीं होने की स्थिति में बलात्कार व पॉक्सो के लंबित मामलों का शायद कभी भी निपटारा नहीं हो पाएगा.

 

सभी अदालतों की जवाबदेही तय हो सके

 

पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में इन विशेष त्वरित अदालतों की आवश्यकता और इनकी केंद्रीय भूमिका पर प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता और बाल विवाह मुक्त भारत के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “बलात्कार व यौन शोषण के मामलों में न्याय के लिए पीड़ितों की अंतहीन प्रतीक्षा के खात्मे की दिशा में भारत अब ‘टिपिंग प्वाइंट’ तक पहुंच रहा है. यह एक बेहद अहम क्षण है जब हमें अपने बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा व संरक्षण में निवेश करना चाहिए और अगले तीन साल में सभी लंबित मामलों के निपटारे के लिए एक हजार विशेष त्वरित अदालतों के गठन से हम पीड़ितों के लिए न्याय का अधिकार सुनिश्चित कर सकते हैं. यह वो क्षण है जब पीड़ितों के लिए पुनर्वास और क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करते हुए समाज में न्याय की प्रतिरोधक शक्ति को स्थापित करने के लिए लंबित मामलों व अपीलों के समयबद्ध निपटारे के बाबत एक नीति बनाई जाए ताकि न्याय वितरण प्रक्रिया में हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट सहित सभी अदालतों की जवाबदेही तय हो सके.”

 

समय सीमा तय करने की जरूरत

 

रिपोर्ट आगे कहती है कि न्याय के लिए एक पीड़ित की लड़ाई इन विशेष अदालतों में आरोपी को सजा सुनाए जाने के साथ ही खत्म नहीं हो जाती, बल्कि यह तब तक जारी रहती है जब तक की ऊपरी अदालतों में लंबित अपीलों का निपटारा न हो जाए. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि शीघ्रता से न्याय सुनिश्चित करने के लिए मुकदमों और अपीलों के निपटारे के लिए एक समय सीमा तय की जाए. इस बाबत हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दायर अपीलों के निपटारे की समय सीमा तय करने के लिए एक नीतिगत रूपरेखा की जरूरत है.

 

नियमित रूप से रखे जाएं आंकड़े

 

रिपोर्ट ने बलात्कार व पॉक्सो के मामलों में पूरे देश में अभियुक्तों की दोषसिद्धि और उनके बरी होने के आंकड़े रखने और इसे नियमित रूप से अद्यतन करने की भी सिफारिश की है. इसमें कहा गया है कि सभी विशेष अदालतों के सूचना पट्ट पर मुकदमे के निपटारे की स्थिति भी अंकित की जाए ताकि इनके आधार पर पीड़ित या राज्य अभियुक्त की रिहाई को चुनौती दे सकें और साथ ही हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों से संबंधित आंकड़े भी उपलब्ध हो सकें.

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