पटना : लालू यादव के करीबी सुभाष यादव की 67.56 करोड़ की संपत्ति ईडी ने की अटैच

पटना के शाहपुर इलाके के हेतन गांव के रहने वाले सुभाष ने एक छोटे से प्रॉपर्टी डीलर के रूप में शुरुआत की थी. व्यवसाय को तेजी से बढ़ाया. 1990 के दशक में लालू के एक रिश्तेदार के करीब आए धीरे-धीरे सुभाष लालू यादव के विश्वासपात्रों में से एक बन गए. 

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पटना: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरजेडी चीफ लालू यादव के करीबी सुभाष यादव के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. ईडी ने सुभाष यादव की 67.56 करोड़ संपत्ति अटैच कर ली है. मेसर्स ब्रॉडसंस कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग के तहत दर्ज मामले में कार्रवाई करते हुए ईडी ने सुभाष यादव की पटना, देहरादून और गाजियाबाद की पांच अचल संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क कर लिया है. इससे पहले भी 11 मार्च को ईडी ने सुभाष यादव के खिलाफ कार्रवाई की थी. सुभाष और उनके सहयोगियों के कई ठिकानों पर छापेमारी में 2.3 करोड़ रुपये बरामद हुए थे और सुभाष यादव को गिरफ्तार भी किया गया था.


कौन है सुभाष यादव


सुभाष यादव के लालू यादव के परिवार और सत्ता से करीब होने की कहानी 1990 के दशक की शुरुआत में ही शुरू हो गई थी. सुभाष यादव पूरी प्लानिंग के साथ लालू परिवार के करीब होता जा रहा था. पटना के शाहपुर इलाके के हेतन गांव के रहने वाले सुभाष ने एक छोटे से प्रॉपर्टी डीलर के रूप में शुरुआत की थी. व्यवसाय को तेजी से बढ़ाया. राजनीतिक दलों से से दोस्ती बढ़ाई. सुभाष पहली बार 1990 के दशक में लालू के एक रिश्तेदार के करीब आए धीरे-धीरे सुभाष लालू यादव के विश्वासपात्रों में से एक बन गए. इसके बाद सुभाष का बालू के कारोबार में पदार्पण हुआ. उसने अपना व्यवसाय चलाने के लिए ब्रॉडसन कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड (बीसीपीएल) नामक एक कंपनी बना. राजनीतिक हलकों में सुभाष को राजद के प्रमुख फाइनेंसरों में से एक के रूप में जाना जाता है.

 

चतरा लोकसभा से चुनाव लड़े थे, हार गये


2019 के लोकसभा चुनाव में, राजद ने सुभाष को झारखंड की चतरा सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वह हार गए. 2019 के अपने चुनावी हलफनामे में उन्होंने 5 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी, बताया जाता है कि ईडी की जांच में पता चला है कि सुभाष ने लालू की पत्नी और पूर्व सीएम राबड़ी देवी से 1.72 करोड़ रुपये में पटना में तीन फ्लैट खरीदे थे. ईडी के अनुसार, बीसीपीएल "अवैध रेत खनन और खनन प्राधिकरण, बिहार द्वारा जारी विभागीय प्रीपेड परिवहन ई-चालान का उपयोग किए बिना रेत की बिक्री में शामिल थी. इससे सरकार को भारी राजस्व की हानि हुई. सरकारी खजाने को 161.15 करोड़ रुपये का चूना लगा.

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