अब संथाल की राजनीति में शिफ्ट करेंगे चंपई, 16 को बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ फूंकेंगे बिगुल

चंपई सोरेन ने कहा कि वोट बैंक के लिए कुछ राजनीतिक दल भले ही आंकड़े छुपाने का प्रयास करें, लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती. 

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रांची : झारखंड में बीजेपी चंपई के चेहरे पर कोल्हान और संथाल परगना की विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने की योजना बना रही है. पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अब कोल्हान से निकलकर संथाल की राजनीति में दस्तक देने जा रहे हैं. 30 अगस्त को बीजेपी में शामिल होने के बाद चंपई सोरेन ने कहा था कि वे संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ जोरदार आंदोलन करेंगे. 16 सितंबर से वे बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंकेंगे. संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठ और डेमोग्राफी चेंज को समझने और इसका समाधान तलाशने के लिए 16 सितंबर को पाकुड़ के हिरणपुर में मांझी परगना महासम्मेलन बुलाया गया है. चंपई सोरेन ने संथालवासियों से इसमें शामिल होने की अपील की है.

 

पाकुड़ में आदिवासी समाज हो चुका है अल्पसंख्यक

 

चंपई सोरेन ने एक्स (ट्विटर) पर एक पोस्ट करते हुए कहा है कि ‘’संथाल हूल के दौरान, स्थानीय संथाल विद्रोहियों के डर से अंग्रेजों ने पाकुड़ (झारखंड) में मार्टिलो टावर का निर्माण करवाया था, जो आज भी है. इसी टावर में छिप कर अंग्रेज सैनिक, स्वयं बचते हुये, इसके छेद से बंदूक द्वारा पारंपरिक हथियारों से लैस संथाल विद्रोहियों पर गोलियां बरसाते थे. इस वीर भूमि की ऐसी कई कहानियां आज भी बड़े-बुजुर्ग गर्व के साथ सुनाते हैं, लेकिन क्या आपको यह पता है कि आज उसी पाकुड़ में हमारा आदिवासी समाज अल्पसंख्यक हो चुका है.’’

 

शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदलती

 

चंपई ने आगे लिखा, ‘’वोट बैंक के लिए कुछ राजनीतिक दल भले ही आंकड़े छुपाने का प्रयास करें, लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती. वहां की वोटर लिस्ट पर नजर डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी माटी,  हमारी जन्मभूमि से हमें ही बेदखल करने में बांग्लादेशी घुसपैठिए काफी हद तक सफल हो गए हैं. पाकुड़ के जिकरहट्टी स्थित संथाली टोला और मालपहाड़िया गांव में अब आदिम जनजाति का कोई सदस्य नहीं बचा है, तो आखिर वहां के भूमिपुत्र कहां गए? उनकी जमीनों, उनके घरों पर अब किसका कब्जा है? इसके साथ-साथ वहां के दर्जनों अन्य गांवों-टोलों को जमाई टोला में कौन बदल रहा है? अगर वे स्थानीय हैं,  तो फिर उनका अपना घर कहां है? वे लोग जमाई टोलों में क्यों रहते हैं? किस के संरक्षण में यह गोरखधंधा चल रहा है?

 

बहन-बेटियों की अस्मत बचाने के लिए शुरू होगा जन-आंदोलन

 

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने के लिए 16 सितंबर को आदिवासी समाज द्वारा पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड में "मांझी परगाना महासम्मेलन" का आयोजन किया गया है, जिसमें हम लोग समाज के पारंपरिक ग्राम प्रधानों एवं अन्य मार्गदर्शकों के साथ बैठ कर इस समस्या का कारण समझने तथा समाधान तलाशने पर मंथन करेंगे. इसी दिन बाबा तिलका मांझी और वीर सिदो-कान्हू के संघर्ष से प्रेरणा लेकर हमारा आदिवासी समाज अपने अस्तित्व तथा माताओं, बहनों एवं बेटियों की अस्मत बचाने हेतु सामाजिक जन-आंदोलन शुरू करेगा. अगर आप पाकुड़ अथवा आसपास रहते हैं, तो आइये, इस बदलाव का हिस्सा बनिये. हमें विश्वास है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह करने वाले वीर शहीदों की यह धरती (पाकुड़) पूरे संथाल-परगना को बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष की राह दिखाएगी.

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