सत्य शरण मिश्रा
रांची
:
पिछले 5 दिन से झारखंड के 683 नेताओं
की रात करवटें लेते बीत रही है. 13 नवंबर को जब
से जनता ने इनकी किस्मत को ईवीएम में कैद किया है, तब से ये बेचैन हैं. इन्हें बस 23 नवंबर का इंतजार है. इंतजार का एक-एक दिन इनपर भारी पड़ रहा है, लेकिन ये इंतजार है कि खत्म हो ही नहीं रही. झारखंड के 43 विधानसभा सीटों पर चुनाव में खड़े 683 प्रत्याशियों में अधिकांश नेताओं को इस रात का अनुभव कई बार हो चुका है. कुछ नए प्रत्याशी हैं जिनके लिए इंतजार वाली यह रात नई है. 24 दिग्गज ऐसे हैं जिनके लिए यह चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य तय करेगा. कुछ ऐसे भी हैं इस चुनाव के बाद रिटायरमेंट ले लेंगे. फिलहाल इन सबको 5 दिन और इंतजार करना होगा. 23 नवंबर को ईवीएम खुलेगा उसके बाद मतगणना के पहले राउंड के साथ ही इनकी धकड़ने बढ़ती चली जाएगी. जो चुनाव जीत गये वो 11वीं रात चैन की नींद सोयेंगे, लेकिन जो हार गये वे फिर कई दिनों तक बेचैनी में करवटें बदलते रातें गुजारेंगे.
24 दिग्गजों की बढ़ी है बेचैनी
जिन 24 दिग्गजों की बात हो रही है उनमें जमशेदपुर पूर्वी से कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ अजय कुमार हैं. जमशेदपुर के सांसद रह चुके हैं, लेकिन ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू ने इन्हें कड़ी चुनौती दे दी है. जमशेदपुर पश्चिमी से जदयू से सरयू राय और कांग्रेस से मंत्री बन्ना गुप्ता के बीच मुकाबला है. जनता ने दोनों की किस्मत ईवीएम में बंद कर दिया है. दोनों दिग्गज अब यही सोच रहे हैं कि 23 को क्या होगा. पूर्व सीएम चंपई सोरेन का भी राजनीतिक भविष्य सरायकेला सीट से दांव पर लगा है. वे दिन-रात बस इसी सोच में डूबे हैं कि बीजेपी ने जिस भरोसे के साथ उनपर और उनके बेटे बाबूलाल पर दांव लगाया है वे उनकी उम्मीदों को पूरा कर पाएंगे या नहीं.
23 को क्या होगा
?
पोटका विधानसभा सीट से बीजेपी की प्रत्याशी मीरा मुंडा इस सोच में डूबी हैं कि उनके साथ उनके पति पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की भी प्रतिष्ठा तो दांव पर लगी है. 23 को आखिर होगा क्या. इधर रांची से विधायक सीपी सिंह 7वीं बार इस बेचैनी की पीड़ा झेल रहे हैं. वे सोच रहे कि इस बार कहीं महुआ माजी उनकी जीत का रथ रोक न दे. वहीं लोहरदगा में मंत्री रामेश्वर उरांव के दिन-रात भी बेचैनी में कट रहे हैं. उधर नीरा यादव, दिनेशानंद गोस्वामी, रामदास सोरन, रामचंद्र सहिस, दशरथ गगराई, दीपक बिरुआ, गीता कोड़ा, कोचे मुंडा, नीलकंठ सिंह मुंडा, सुदर्शन भगत, राधाकृष्ण किशोर, बैद्यनाथ राम, भानु प्रताप शाही, चमरा लिंडा, समीर उरांव जैसे नेता भी इसी बेचैनी में करवटें बदलकर रातें गुजार रहे हैं.





