Ranchi: झारखंड सरकार ने राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में पेसा (पंचायत उपबंध–अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) नियमावली को मंजूरी दे दी गई. इस फैसले के साथ ही वर्षों से लंबित पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन का रास्ता साफ हो गया है.
बैठक के बाद कैबिनेट सचिव वंदना दादेल ने बताया कि नई नियमावली लागू होने के बाद ग्राम सभाओं की भूमिका और अधिकार पहले से कहीं अधिक मजबूत होंगे. सरकार का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों को स्थानीय संसाधनों और निर्णय प्रक्रिया में वास्तविक भागीदारी देना है.
ग्राम सभाओं को मिलेंगे व्यापक अधिकार
पेसा नियमों के तहत ग्राम सभाओं को अपने क्षेत्र में होने वाले खनन कार्यों पर निगरानी और सहमति का अधिकार मिलेगा. इसके साथ ही भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में ग्राम सभा की भूमिका निर्णायक होगी. अब बिना ग्राम सभा की राय के किसी भी बड़े फैसले को आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा.
इसके अलावा वन भूमि के संरक्षण, उपयोग और प्रबंधन से जुड़े अहम निर्णयों में भी ग्राम सभा को कानूनी अधिकार प्रदान किए गए हैं. इससे स्थानीय समुदायों की पारंपरिक व्यवस्था और संसाधनों पर पकड़ मजबूत होगी.
अधिसूचना जारी होते ही लागू होगा पेसा कानून
सरकार ने स्पष्ट किया है कि जैसे ही पेसा नियमावली की अधिसूचना जारी की जाएगी, कानून प्रभावी रूप से लागू हो जाएगा. योजना निर्माण में ग्राम सभाओं को प्राथमिकता दी जाएगी और पारंपरिक ग्राम सभाओं को भी मान्यता दी गई है. सभी ग्राम सभाओं को अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को अधिसूचित करने का अवसर मिलेगा.
पेसा कानून झारखंड के 15 अनुसूचित जिलों में लागू होगा, जहां लंबे समय से इसकी मांग की जा रही थी.
कैबिनेट बैठक में 39 प्रस्तावों को मिली स्वीकृति
कैबिनेट की इस बैठक में केवल पेसा नियमावली ही नहीं, बल्कि कुल 39 प्रस्तावों को मंजूरी दी गई. इनमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पदों के पुनर्गठन का प्रस्ताव शामिल है, जिसके तहत 38 नए पद सृजित किए गए हैं.
इसके अलावा दुमका में 7 किलोमीटर लंबी सड़क के निर्माण के लिए 31 करोड़ रुपये और जमशेदपुर में सड़क परियोजना के लिए 41 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति भी दी गई है.
सरकार के इस फैसले को झारखंड में आदिवासी स्वशासन और विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.



