बीजेपी ने खेल दिया ओबीसी कार्ड!... रवींद्र राय का अब क्या, रहेंगे की जाएंगे?

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Ranchi: बीजेपी ने झारखंड में सांगठनिक बदलाव करते हुए रवींद्र राय को पद से हटाकर सांसद आदित्य साहू को प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है. बीजेपी ने यहां ओबीसी कार्ड खेल दिया है. रवींद्र राय भूमिहार जाति से आते हैं. उनकी जगह पिछड़ी जाति से आने वाले आदित्य साहू को जिम्मेवारी दी गई है. रवींद्र राय को पद से मुक्त किये जाने के बाद कई सवाल सामने आ रहे हैं. सवाल यह है कि अब रवींद्र राय का क्या होगा. क्या उन्हें प्रदेश संगठन में कोई और जिम्मेवारी मिलेगी या राष्ट्रीय संगठन में जगह मिलेगा. या फिर बीजेपी में उनका सफर बस यहीं तक रहेगा?


रवींद्र राय कुशल संगठनकर्ता हैं. उनकी योग्यता को देखते हुए जेवीएम से वापस लौटने के बाद 2011 में उन्हें बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. फिर 2014 में कोडरमा से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद भी बने. यहां तक बीजेपी ने उनपर खूब भरोसा जताया, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का भरोसा रवींद्र राय से भरोसा डगमगा गया. बीजेपी ने आरजेडी से अन्नपूर्णा देवी को लाकर चुनाव लड़वा दिया और रवींद्र राय मुंह देखते रह गये, राय नाराज थे, लेकिन बगावत नहीं की. सोचे लोकसभा नहीं तो विधानसभा के चुनाव में तो धनवार से टिकट मिलेगा ही. पर विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया. 2019 के विधानसभा चुनाव में पूर्व आईजी लक्ष्मण प्रसाद सिंह को धनवार से प्रत्याशी बनाया गया. उधर कोडरमा विधानसभा से नीरा यादव को फिर से टिकट मिल गया. रवींद्र राय मन मसोस कर रहे गये. बाद में राय को डुहको निदेशक के पद का लॉलीपॉप थमा दिया गया. 


5 साल खत्म होने के बाद आ गया 2024 का लोकसभा चुनाव. इस बार भी रवींद्र राय को लोकसभा का टिकट नहीं मिला. लोकसभा के बाद विधानसभा के चुनाव भी आये. रवींद्र राय की सीट से बाबूलाल मरांडी को चुनाव लड़ना था. ऐसे में अगर रवींद्र राय को कोई बड़ा पद नहीं दिया जाता तो धनवार में खेला होने की आशंका थी. इसे देखते हुए फिर उन्हें किसी पद का लॉलीपॉप थमाना था. योजना बनी कि कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया जाए. फिर वे कार्यकारी अध्यक्ष बन गये और बाबूलाल मरांडी को धनवार से जीताने में पूरी ताकत लगा दी.


फिलहाल झारखंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने में करीब 4 साल देर है. अभी संगठन को मजबूत करने के लिए जातिगत और सामाजिक समीकरण के मुताबिक उंचे पदों पर नेताओं की नियुक्ति होगी. अभी तो शुरुआत हुई है. जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जा सकते हैं. कहा जा रहा है कि कोई आदिवासी नेता ही प्रदेश अध्यक्ष बनेगा. बीजेपी में फिलहाल दो ही बड़े आदिवासी नेता हैं, जिनकी पकड़ राष्ट्रीय संगठन में हैं. एक बाबूलाल और दूसरे अर्जुन मुंडा, मरांडी विधायक दल के नेता और नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में हैं, जबकि अर्जुन मुंडा किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन वे प्रदेश की राजनीति में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं हैं. प्रदेश कार्यालय में उनका आना जाना बहुत कम है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास मुंडा से ज्यादा एक्टिव हैं. अक्सर प्रदेश कार्यालय के चक्कर लगाते हैं, लेकिन अगर बीजेपी ने कार्यकारी अध्यक्ष ओबीसी और अध्यक्ष आदिवासी वाला फॉर्मेट तैयार किया होगा तो रघुवर को निराशा हाथ लग सकती है. अब रही बात रवींद्र राय की तो भविष्य में अगर जरूरत पड़ी तो फिर मना लिया जाएगा. एक पद ही तो देना है.

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