बाबूलाल दारू, चंपई घुसपैठियों के पीछे पड़े,  मुंडा और रघुवर क्यों हैं खामोश

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Ranchi: झारखंड में विधानसभा का चुनाव हारने के 6 महीने बाद भी बीजेपी अबतक सदमे से बाहर नहीं आ पाई है. मिशन 2029 के लिए फिलहाल झारखंड बीजेपी के पास कोई ठोस रणनीति और मुद्दे नजर नहीं आ रहे हैं. प्रदेश के बड़े नेताओं में तालमेल की कमी साफ नजर आ रही है. सरकार को घेरने के लिए मुद्दों के चयन में भी तालमेल नहीं दिख रहा है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी इन दिनों दारू तो पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन घुसपैठियों के पीछे पड़े हैं. प्रदेश बीजेपी के दो बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और रघुवर दास इन दिनों शांत हैं. पार्टी के कार्यक्रमों में तो नजर आ रहे हैं, लेकिन किसी मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर नहीं हो रहे. 


हेमंत कैबिनेट ने जब से नई उत्पाद नीति को मंजूरी दी है तब से बाबूलाल मरांडी दारू के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं. उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस, प्रेस बयान और यहां तक की उनका सोशल मीडिया अकाउंट भी सिर्फ शराब से भरा पड़ा है. बाबूलाल आरोप लगा रहे हैं कि नई शराब नीति के नाम पर घोटाले की तीसरी स्क्रिप्ट लिखी जा रही है. पहले दो घोटाले अभी भी जांच में हैं, लेकिन अब एक और घोटाला नीति की शक्ल में सामने खड़ा है. वे कह रहे हैं कि ये नीति शराब व्यापार नहीं बल्कि शराब माफियाओं का संविधान है. उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने ये नीति नहीं वापस ली, तो हर गांव, हर पंचायत, हर ज़िले से आवाज़ उठेगी. यानी बाबूलाल मरांडी नई उत्पाद नीति को लेकर सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करने के मूड में हैं.


उधर पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अलग ही मुद्दा पकड़कर बैठे हैं. बांग्लादेशी घुसपैठ और डेमोग्राफी चेंज के मुद्दे को लेकर बीजेपी विधानसभा चुनाव में गई थी, लेकिन इस मुद्दे फायदा तो नहीं हुआ उल्टे बीजेपी को संथाल परगना में नुकसान ज्यादा हो गया. तब बीजेपी बांग्लेदेशी घुसपैठ के मुद्दे से हट गई, लेकिन चंपई सोरेन इस मुद्दे से नहीं भटके हैं. वे लगातार इस मुद्दे पर मुखर हैं. चंपई का दावा है कि पाकुड़ जिले में 90% घुसपैठिए बस चुके हैं और सरकार इस पर आंख मूंदे हुए है. कई क्षेत्रों में होल्डिंग सेंटर बनाए बिना बाहर से आए लोगों को बसने दिया जा रहा है, जो कि “कानून का खुला उल्लंघन है.” इसके अलावा धर्मांतरण का मुद्दा भी उन्होंने पकड़ कर रखा है. चंपई सोरेन धर्म बदलने वाले आदिवासियों को सरकारी लाभ से वंचित करने की मांग कर रहे हैं.


वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के पूर्व राज्यपाल रघुवर दास फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं. रघुवर दास के बीजेपी में शामिल हुए 5 महीने हो चुके हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें अबतक कोई पद नहीं दिया है. बाबूलाल मरांडी 2 महीने से 2-2 महत्वपूर्ण पद प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पर काबिज हैं. चर्चा थी कि बाबूलाल को विधायक दल का नेता बनाकर रघुवर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा, लेकिन 2 महीने में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बीजेपी में आने के बाद रघुवर दास ने एक बार गिरिडीह में हुई हिंसक झड़प के मामले में तेवर में नजर आये थे, लेकिन उसके बाद वे शांत हो गये. शायद पार्टी और पार्टी नेतृत्व की नजर में आने के लिए वे कोई नया और मुद्दा मुद्दा ढूंढने में लगे हैं. फिलहाल रघुवर जमशेदपुर की राजनीति में व्यस्त हैं.


एक दशक पहले तक जोश से भरे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी इन दिनों खामोश हैं. अर्जुन मुंडा केंद्रीय नेतृत्व के चहेते हैं. लेकिन मुंडा केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. 2024 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद केंद्रीय नेताओं का भरोसा उनसे और कम होता चला गया. वैसे भी अर्जुन मुंडा पिछले कई सालों से मुद्दों की राजनीति से दूर नजर आ रहे हैं. किसी भी मुद्दे को लेकर वे मजबूती के साथ प्रदेश की सरकार पर कभी हमलावर नजर नहीं आये.   

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