बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम का बना था यूपी-बिहार में खौफ, मुख्यमंत्री को भी मारने की ली थी सुपारी…

  • Posted on October 3, 2024
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  • By Bawal News
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सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में सुनवाई करते हुए राजद नेता विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला समेत दो आरोपितों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. इस हत्याकांड में कई किरदार हैं, लेकिन सबसे अहम किरदार था पूर्वांचल और बिहार में आतंक का पर्याय श्रीप्रकाश शुक्ला. जानिये, हत्याकांड से जुड़े सभी अहम पहलुओं और किरदारों को.

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पटना : वर्ष 1998 में हुए बिहार के पूर्व मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है. सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों की बेंच ने बृज हत्याकांड में सुनवाई करते हुए राजद नेता मुन्ना शुक्ला समेत दो आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. कोर्ट ने इस हत्याकांड में बाहुबली मुन्ना शुक्ला और एक अन्य मंटू तिवारी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है. वहीं इस मामले में लोजपा के पूर्व सांसद सूरजभान सिंह समेत छह आरोपियों को बरी कर दिया है. आरजेडी के कद्दावर नेता रहे बृज बिहारी प्रसाद की हत्या वर्ष 1998 में पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में कर दी गई थी. हत्या के मामले में 8 लोगों को आरोपी बनाया गया था. पटना हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था. बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी, बीजेपी और सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने 21 और 22 अगस्त को इस मामले की सुनवाई पूरी कर ली थी. जस्टिस संजीव खन्ना, संजय कुमार और आर महादेवन की बेंच आज अपना फैसला सुनाया.

 

13 जून 1998 को हुई थी बृजबिहारी प्रसाद की हत्या

 

बृज बिहारी प्रसाद लालू यादव की पार्टी के बड़े और दबंग नेता थे. उनकी हत्या गैंगवार का नतीजा था. बृज बिहारी प्रसाद की हत्या में श्रीप्रकाश शुक्ला का भी नाम आया था जो उस समय सूरजभान के गैंग में शूटर था. बाद में श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम का यूपी और बिहार में खौफ पैदा हो गया. गाजियाबाद में उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स ने शुक्ला को एक एनकाउंटर में मार गिराया था. यूपी में पहली बार श्रीप्रकाश शुक्ला को ही खोजने के लिए एसटीएफ बनाई गई थी. यूपी में सरेआम कई कत्ल करने वाला श्रीप्रकाश शुक्ला 1998 में हड़कंप मचाने बिहार पहुंच चुका था. उसने बिहार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की 13 जून 1998 को एक अस्पताल के सामने हत्या कर दी. इस हत्याकांड की वजह से चारों ओर हंगामा बरपा था, तभी खबर मिली कि श्रीप्रकाश ने यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की 6 करोड़ रुपये में सुपारी ले ली थी. बाद में पुलिस की जाल में श्रीप्रकाश शुक्ला फंस गया और उसका एनकाउंटर हो गया.

 

 

पप्पू यादव की बहन का पकड़ लिया था हाथ

 

बृजबिहारी सिंह की हत्या से पहले श्रीप्रकाश शुक्ला अस्पताल में रहकर रोजाना बृजबिहारी प्रसाद की दिनचर्या की रेकी कर रहा था. बताया जाता है कि इसी दौरान बाहुबली पप्पू यादव की डॉक्टर बहन वहां इंटर्नशिप कर रही थी. पप्पू यादव की बहन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद का बीपी, शूगर एवं अन्य रूटीन चेकअप चार्ट मेंटेन करने आती थी. इसी दौरान श्रीप्रकाश शुक्ला की नजर जब पप्पू यादव की बहन पर गई तो उसने उसकी बांह पकड़ ली. इसपर पप्पू यादव की बहन ने कहा कि तुम जानते हो तुमने किसका हाथ पकड़ा है. मेरे भाई तक जब यह बात पहुंचेगी तब तुम्हारा क्या अंजाम होगा ये कोई नहीं जानता है. इसपर श्रीप्रकाश शुक्ला ने भी ताव में कहा- 'अपने भाई को बता देना और कल उसे अपने साथ लेकर आना, तब मैं बताऊंगा कि मैं कौन हूं.’ इस दौरान श्रीप्रकाश शुक्ला ने पप्पू यादव की बहन से अपना नाम अशोक बताया.

 

एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया

 

बिहार के मोकामा से निर्दलीय विधायक चुने जाने वाले सूरजभान सिंह की श्रीप्रकाश शुक्ला से गहरी दोस्ती थी. शुक्ला सूरजभान को अपना गुरु मानता था. पूर्वांचल के कई टेंडरों में वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी का दखल होता था, जिसकी वजह से बिहार के सूरजभान को दिक्कत होती थी. श्रीप्रकाश शुक्ला ने गोरखपुर में पहली बार वीरेंद्र शाही पर अटैक कर दिया. उस दौरान हमले में वीरेंद्र शाही बाल-बाल बच गया, घटना के वक्त श्री प्रकाश के साथ अनुज सिंह, सुधीर त्रिपाठी और सूरजनभान भी मौजूद था. श्रीप्रकाश शुक्ला ने दूसरी बार भी वीरेंद्र शाही पर हमला किया, लेकिन इस बार भी उसकी किस्मत अच्छी निकली. तीसरी बार 1997 में वीरेंद्र शाही लखनऊ स्थित इंदिरा नगर में अपनी प्रेमिका के लिए किराए का मकान देखने अकेले ही निकला था, तभी पहले से रेंकी कर रहे श्रीप्रकाश ने वीरेंद्र शाही की हत्या कर दी. शाही की मौत के बाद हरिशंकर तिवारी खुद ही एक-एक कर रेलवे के टेंडर छोड़ने लगे थे, लेकिन बहुत दिन श्रीप्रकाश का आतंक नहीं चला और एसटीएफ ने उसका एनकाउंटर करते हुए उसके खूनी खेल का अंत कर दिया.

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