पैरवी पुत्र!, या चप्पल घिसने वाला... किसके हाथ लगेगा घाटशिला का टिकट?

The verdict in Malegaon blast case came after 17 years, all 7 accused including Sadhvi Pragya Thakur were acquitted, BJP said Congress should answer saffron terrorism (72)-wShVKosZ1p.jpg

Ranchi: घाटशिला में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी का प्रत्याशी कौन होगा. क्या पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को फिर से मौका मिलेगा या फिर रमेश हांसदा का नंबर लगेगा? या फिर कोई और होगा बीजेपी का प्रत्याशी. इस सवाल का जवाब जानने के लिए घाटशिला में बीजेपी के दावेदारों के साथ-साथ जेएमएम भी बेचैन है. क्योंकि प्रत्याशी के देखने-तौलने के बाद भी जेएमएम अपनी चुनावी रणनीति में फेरबदल करेगा. वैसे तो बीजेपी के अंदर चर्चा बाबूलाल सोरेन के नाम की है, लेकिन एक दशक पहले जेएमएम से बीजेपी में आये रमेश हांसदा की दावेदारी ने बाबूलाल सोरेन और चंपई सोरेन को परेशान जरूर कर दिया है. मीडिया, सोशल मीडिया और फिल्ड से लेकर संगठन तक जिस तरह रमेश हांसदा ने अपनी फिल्डिंग सेट कर रखी है. उससे लग रहा कि कैंडिडेट सेलेक्शन में कुछ न कुछ खेल जरूर होगा.

बुरी तरह हार गये थे बाबूलाल सोरेन

बीजेपी ने बाबूलाल सोरेन को घाटशिला से चुनाव लड़वाया था उस वक्त परिस्थितियां दूसरी थी, लेकिन इस बार दूसरी है. बाबूलाल सोरेन चुनाव तो लड़ गये, लेकिन बीजेपी और पिता चंपई सोरेन के भरोसे. घाटशिला में बीजेपी का अपना वोटबैंक है. 2000 और 2005 के चुनाव तक बीजेपी यहां मजबूत स्थिति में नहीं थी, लेकिन 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां मजबूत पार्टी बनकर उभरी. 2014 में बीजेपी ने 6403 वोटों से चुनाव जीता था. वहीं 2019 में 6724 वोटों से बीजेपी चुनाव हार गई, लेकिन 2024 में बीजेपी को 22446 वोटों से चुनाव हारना पड़ा. बीजेपी का वोटबैंक और चंपई सोरेन का हाथ सिर पर लेकर चुनाव मैदान में उतरे बाबूलाल सोरेन बुरी तरह चुनाव हार गये.

जननेता वाली छवि नहीं बना पाये

बीजेपी को अगर बाबूलाल सोरेन और रमेश हांसदा में से किसी एक चुनना पड़े तो किसका पलड़ा भारी होगा यह भी जानना जरूरी है. पहले बात करते हैं बाबूलाल सोरेन की. बाबूलाल सोरेन की पहचान ये है कि वे चंपई सोरेन के पुत्र हैं. जमीन से जुड़े नेता हैं, लेकिन महंगी गाड़ियों में घूमते हैं. बीच-बीच में घाटशिला विधानसभा का चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन रुतबा माननीयों वाला रखते हैं. सोशल मीडिया और मीडिया में बहुत ज्यादा नजर नहीं आते हैं. बातें कर लेते हैं, लेकिन वोकल नहीं है. एक जननेता वाली छवि नहीं बना पाये हैं.

सालों से चप्पल घिस रहे हैं

दूसरी तरफ हैं रमेश हांसदा. कोल्हान क्षेत्र में कई सालों से राजनीति में चप्पल घिस रहे हैं. पहले जेएमएम का फिर बीजेपी का झंडा उठाकर गांव-गांव घूम चुके हैं. नेताओं वाले सारे गुण हैं. कोल्हान से बाहर भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई है. पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. नेताओं जैसा लच्छेदार बोलते हैं. शानदार बयान देते हैं. चंपई सोरेन को सरायकेला से विधानसभा चुनाव और लक्ष्मण टुडू को 2014 में घाटशिला विधानसभा चुनाव जितवाने का दावा करते हैं. इस बार खुद के लिए खुलकर टिकट मांग लिया है. दावेदारी तो मजबूत है, लेकिन देखना ये है कि बीजेपी क्या फैसला लेती है. 

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