क्या मुख्यमंत्री शोक मना सकते हैं? हेमंत सोरेन का "पुत्रधर्म और राजधर्म"

The verdict in Malegaon blast case came after 17 years, all 7 accused including Sadhvi Pragya Thakur were acquitted, BJP said Congress should answer saffron terrorism (16)-q2eKCNtby1.jpg

क्या मुख्यमंत्री शोक मना सकते हैं?

शोक को किसी प्रोटोकॉल की ज़रूरत नहीं होती, बस एक ऐसा दिल चाहिए जो उसे महसूस करे.

झारखंड के पूज्य संस्थापक,आदिवासी आंदोलन के पुरोधा, तीन बार मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और लंबे समय तक सांसद रहे दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन एक राजनीतिक क्षति से कहीं बढ़कर है. यह एक ऐसी आवाज़ का जाना है जिसने झारखंड की पहचान को मज़बूत किया और यहाँ के लोगों को राष्ट्रीय चेतना में जगह दी.

झारखंड के माननीय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए, यह सिर्फ़ एक कद्दावर नेता का नुकसान नहीं था, बल्कि एक पिता, मार्गदर्शक का नुकसान था. उनके पैतृक घर नेमरा में,तस्वीरों में कोई राजनेता कैमरों के सामने शोक प्रकट करते हुए दिखे और तस्वीरों में एक बेटा दिखाया गया, जो पद के कवच से वंचित था,अपने दर्द में बेबस था, और इस तरह टूट रहा था जिसे कोई आधिकारिक बयान कैद नहीं कर सकता.
सार्वजनिक जीवन अक्सर दुःख को नियंत्रित करने और अडिग शक्ति के प्रदर्शन की माँग करता है. नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे दिल टूटने पर भी धैर्य बनाए रखें. फिर भी हेमन्त जी की खुली संवेदनशीलता इस विचार को चुनौती देती है और हमें याद दिलाती है कि समावेशिता का अर्थ भावनात्मक ईमानदारी के लिए जगह बनाना भी है.

दुःख शायद ही कभी समावेशी होता है. शोक मनाने वाले अक्सर खुद को अदृश्य नियमों से जूझते हुए पाते हैं,राजनीतिक जीवन में ये नियम और भी कठोर होते हैं. फिर भी यह क्षण हम सभी के लिए एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है,मानव होना,दुःख को प्रकट करना और दूसरों को अपने तरीके से शोक मनाने की अनुमति देना ठीक है.

सोशल मीडिया के हमारे युग में,जीवन केवल जीत,मील के पत्थर और सम्मान दिखाने के लिए रचा गया है. दुःख को अक्सर कोई जगह नहीं मिलती. हमें सार्वजनिक रूप से जश्न मनाने और निजी तौर पर शोक मनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. हेमंत सोरेन जी का दुःख इस आख्यान को तोड़ता है,यह याद दिलाता है कि मानव होने का अर्थ है मानव जीवन को गहराई से महसूस करना और नेतृत्व में भी आँसुओं के लिए जगह होती है.

अपने पिता के लिए रोना,दुनिया को प्यार और नुकसान दिखाना,कमज़ोरी नहीं है. यह एक गहरा मानवीय कार्य है जो नेता और जनता के बीच की खाई को पाटता है. उस पल में, हेमंत सोरेन जी का दुःख एक सामूहिक दुःख बन गया, जिसने हमें सिखाया कि असली ताकत कभी-कभी आँसुओं को रोकने में नहीं, बल्कि उन्हें बहने देने में निहित होती है.
अपने विचारों की कलम से अंत मे अंग्रेजी के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी हेतु मेरी सोच...
And as Jharkhand bids farewell to its founding father, we are left with words that feel both fitting and adequate:

Here was a Caesar - when comes such another ?

दीपक बिरुआ
(लेखक झारखंड सरकार के भू-राजस्व एवं परिवहन मंत्री हैं)
यह लेख दीपक बिरुआ के एक्स प्रोफाइल से लिया गया है

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