जान लीजिए... वन नेशन, वन इलेक्शन को कानून बनने के लिए कितनी चुनौतियों का करना पड़ेगा सामना

वन नेशन, वन इलेक्शन का प्रस्ताव केंद्रीय कैबिनेट से पास हो चुका है, लेकिन अभी इसे कानून का रूप लेने के लिए लोकसभा में कम से कम 362 और राज्यसभा में 163 सांसदों का समर्थन जरूरी होगा. 15 राज्यों के विधानसभा से भी बिल को पास कराना जरूरी होगा.

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दिल्ली : वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. कोविंद कमेटी की रिपोर्ट को बुधवार को मोदी सरकार ने ग्रीन सिग्नल दे दिया है. इसके साथ ही देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ करवाने की राह अब आसान हो गई है. हालांकि आगे अभी सरकार के लिए इसे पूरी तरह से लागू करना चुनौती होगा. इसके लिए संविधान संशोधन और राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है, जिसके बाद ही इसे लागू किया जाएगा. माना जा रहा है कि अब केंद्र सरकार इसे शीतकालीन सत्र में संसद में लाएगी. हालांकि, ये संविधान संशोधन वाला बिल है और इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी है. बिल तभी पास होगा जब इसे संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा. यानी, लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 और राज्यसभा के लिए 163 सदस्यों का समर्थन जरूरी होगा. संसद से पास होने के बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा का अनुमोदन भी जरूरी होगा. यानी, 15 राज्यों की विधानसभा से भी इस बिल को पास करवाना जरूरी है. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्ष के बाद ही ये बिल कानून बन सकेंगे.

कोविंद कमेटी ने पेश की थी 18626 पेज की रिपोर्ट

वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर मार्च महीने में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में कमेटी ने अपनी 18,626 पेज वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. रिपोर्ट को कैबिनेट की मंजूरी के संकेत एक दिन पहले ही मिल गये थे, जब गृहमंत्री अमित साह ने कहा था कि एक राष्ट्र, एक चुनाव मोदी सरकार के इसी कार्यकाल के दौरान अगले 5 वर्षों के भीतर लागू किया जाएगा. शाह ने कहा था कि सरकार इस कार्यकाल के भीतर एक राष्ट्र एक चुनाव लागू करने की योजना बना रही है. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार पीएम पद की शपथ लेने के बाद अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में भी 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' का जिक्र किया था. उन्होंने जोर देकर कहा था कि लगातार चुनाव देश के विकास को धीमा कर रहे हैं.

62 राजनीतिक दलों से किया था संपर्क, 32 ने किया था समर्थन

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई बनी समिति ने 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था. इनमें से 32 ने एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया था. जबकि, 15 पार्टियां इसके विरोध में थीं. 15 ऐसी पार्टियां थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था. केंद्र की एनडीए सरकार में बीजेपी के अलावा चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, नीतीश कुमार की जेडीयू और चिराग पासवान की एलजेपी (आर) बड़ी पार्टियां हैं. जेडीयू और एलजेपी (आर) तो एक देश, एक चुनाव के लिए राजी हैं, जबकि टीडीपी ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया है. जेडीयू और एलजेपी (आर) ने एक देश, एक चुनाव का ये कहते हुए समर्थन किया था कि इससे समय और पैसे की बचत हो सकेगी. वहीं कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, सीपीएम और बसपा समेत 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया था. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा, टीडीपी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग समेत 15 पार्टियों ने कोई जवाब नहीं दिया था.

वन नेशन, वन इलेक्शन से फायदा

वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होते ही नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी साथ होंगे. वर्तमान में, केंद्र सरकार का चयन करने के साथ-साथ एक नई राज्य सरकार के लिए भी लोग मतदान करते हैं. एक देश एक चुनाव लागू होते ही संसाधनों की भी बचत होगी. 

ये प्रैक्टिकल नहीं है : खरगे

वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी मिलने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, "ये प्रैक्टिकल नहीं है ये चलने वाला नहीं है. ये इश्यू को डाइवर्ट करने करने के लिए है." 

 

 

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