घाटशिला उपचुनाव: बलमुचू बैठाये गये, रमेश हांसदा को बीजेपी का मौन समर्थन!

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Ranchi: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के साथ घाटशिला विधानसभा उपचुनाव की तारीख का भी जल्द ऐलान हो सकता है. उपचुनाव के लिए निर्वाचन आयोग की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है. उधर बीजेपी और जेएमएम से भी नेताओं ने जनसंपर्क और बैठकें तेज कर दी है. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद प्रदीप बलमुचू बीच में इंडिया गठबंधन को टेंशन देने आये थे, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें ठिकाने लगा दिया है. केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदीप बलमुचू से चुपचाप बैठने को कहा है और जेएमएम के प्रत्याशी सोमेश को समर्थन देने का निर्देश दिया है. इसके बाद भी बलमुचू जिदियाए हुए हैं. अब उन्हें ठीक से समझाने के लिए दिल्ली बुलाया गया है.


बलमुचू घाटशिला विधानसभा सीट से तीन बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बन चुके है, इसलिए उपचुनाव आते ही फिर से उनकी विधायक बनने की इच्छा हिलोरें मारने लगी है, लेकिन प्रेशर पॉलिटिक्स कोई काम नहीं आने वाला. 2019 में भी इसी तरह विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर वे बागी हो गये थे और जाकर आजसू से चुनाव लड़ लिया था, लेकिन हार गये और फिर कांग्रेस में शामिल होने के लिए खूब हाथ-पैर मारा था. खुद को कांग्रेस में वापस लेने के लिए अर्जी लगाई थी, जिसे केंद्रीय नेतृत्व ने बहुत दिनों तक लटका कर रखा था. बाद में उनकी कांग्रेस में वापसी हुई. इसलिए इस बार वे चुनाव लड़ने के लिए बगावत तो करने की गलती नहीं करेंगे.


इंडिया गठबंधन से सोमेश तो फाइनल हैं, लेकिन बीजेपी का कैंडिडेट अभी फाइनल नहीं हुआ है. कई लोग टिकट की रेस में हैं पर कोई खुलकर दावेदारी नहीं कर रहा है, लेकिन रमेश हांसदा बीजेपी का झंडा उठाकर निकल पड़े हैं घाटशिला के गांव-गांव. बीजेपी के कुछ बड़े पदाधिकारियों का कहना है कि हांसदा झंडा ढोते रह जाएंगे, लेकिन टिकट तो बाबूलाल सोरेन को ही मिलेगा. अब सोचने वाली बात ये कि अगर बाबूलाल सोरेन को ही टिकट देना है तो बीजेपी उनके नाम की घोषणा क्यों नहीं कर रही है. अगर रमेश हांसदा को चुनाव नहीं लड़वाना है तो उन्हें चुनाव प्रचार करने से रोका क्यों नहीं जा रहा है. इस तरह की परिस्थियों में तो बीजेपी अक्सर अनुशासन का डंडा चलाती है. टिकट के दावेदारों को नोटिस देती है. उन्हें पार्टी से निकाला जाता है, लेकिन रमेश हांसदा के साथ अबतक इस तरह की कोई बात नहीं हुई. यानी साफ है कि रमेश हांसदा को प्रदेश नेतृत्व का मौन समर्थन है. सवाल तो उठ रहा है कि क्या बाबूलाल मरांडी रमेश हांसदा को चुनाव लड़वाना चाहते हैं.

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