बन्ना ने चम्पाई को बताया विभीषण, बोले- अनुकम्पा पर मिली कुर्सी को अधिकार समझने लगे थे
- Posted on August 19, 2024
- राजनीति
- By Bawal News
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जब पार्टी और गठबंधन बुरे दौर से गुजर रहा था तो वे भाजपा नेताओं से अपनी सेटिंग बैठा रहे थे, जब हमारे नेता जेल में थे तो केंद्र सरकार की कानून बदलने वाली योजना को हर अखबार के प्रमुख पन्नों में अपनी फोटो के साथ छपा कर कौन सा गठबंधन धर्म निभा रहे थे?
रांची: पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने रविवार को एक्स पर एक लंबा पोस्ट कर सीएम हेमंत सोरेन और झामुमो पर सवाल उठाए. उसके दूसरे दिन स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने प्रेस रिलीज जारी कर चम्पाई सोरेन को विभीषण बताया. कहा चम्पाई अनुकम्पा पर मिली कुर्सी को अधिकार समझने लगे थे. दूसरे को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले चम्पाई सोरेन झूठा सहानुभूति इक्क्ठा करने के चक्कर में शायद अपने कुकर्मों को भूल गए हैं. हम बन्ना गुप्ता के प्रेस रिलीज को हूबहू प्रकाशित कर रहे हैं.
“झारखंड का इतिहास जब भी लिखा जायेगा, चम्पाई सोरेन जी का नाम विभीषण के रूप में दर्ज होगा, जिस पार्टी और माटी ने उनको सबकुछ दिया उसको ठुकरा कर, अपने आत्मसम्मान को गिरवी रख कर वे सरकार को तोड़ने का कार्य कर रहे थे. लेकिन, समय रहते जब चीजें सामने आ गई तो सोशल मीडिया में पोस्ट कर रहे है, जबकि हकीकत है कि वे अपनी करनी पर पछतावा कर रहे हैं और मुंह छुपा रहे हैं.
बन्ना ने कहा गुरूजी ने एक साधारण व्यक्ति को जमशेदपुर से निकाल कर पहचान दी, उनको मान सम्मान दिया, हर संभव मदद किया, पार्टी में अपने बाद का ओहदा दिया, जब-जब जेएमएम की सरकार बनी उसमें मंत्री बनाया, सांसद का टिकट दिया, हर निर्णय का सम्मान किया, लेकिन उसके बदले चम्पाई दा ने राज्य को मौका परस्ती के दलदल में झोकना चाहा.
हमारे नेता हेमंत सोरेन जब जेल जाने लगे तो उन्होंने सभी सत्ता पक्ष के विधायकों से चम्पाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही तो हम सभी ने हेमंत की बात को माना, जब खुद को मुख्यमंत्री बनने की बात थी तो वो निर्णय चम्पाई दा को बुरा नहीं लगा, प्रोटोकॉल के विरुद्ध नहीं लगा, तानाशाही नहीं लगा?
जब हमारे नेता जेल से छुटकर आ रहे थे तो चम्पाई सोरेन कैबिनेट की बैठक में व्यस्त थे, जबकि इतिहास गवाह है कि जब वनवास के बाद प्रभु श्रीराम वापस आये तो भरत ने उनका स्वागत कर उन्हें राज सिंघासन पर बैठने का आग्रह किया था. मगर चम्पाई दा तो अकेले निर्णय लेने में व्यस्त थे, उस समय तो कांग्रेस समेत झामुमो के मंत्रिमंडल के साथियों ने भी कैबिनेट में बात उठाई थी, हर विभाग में उनका हस्तक्षेप था, हर मंत्रालय में वें खुद निर्णय लेने लगे थे,तब उनको नेतृत्व में तानाशाही महसूस नहीं हुआ था क्या?
दूसरे को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले और झूठा सहानुभूति इक्क्ठा करने के चक्कर में चम्पाई दा अपने कुकर्मो को भूल गए है शायद। जब पार्टी और गठबंधन बुरे दौर से गुजर रहा था तो वे भाजपा नेताओं से अपनी सेटिंग बैठा रहे थे, जब हमारे नेता जेल में थे तो केंद्र सरकार की कानून बदलने वाली योजना को हर अखबार के प्रमुख पन्नों में अपनी फोटो के साथ छपा कर कौन सा गठबंधन धर्म निभा रहे थे? जबकि INDIA गठबंधन देश में इसका विरोध कर रहा था, लेकिन चम्पाई दादा भाजपा से अपना पीआर बढ़ाने में लगे थे, भाजपा नेतृत्व को खुश करने में लगे हुए थे.
बन्ना ने कहा चम्पाई दादा 2019 का चुनाव आपके चेहरे पर नहीं बल्कि हेमंत बाबू के चेहरे पर लड़ा था और ये जनादेश हेमंत बाबू और गुरूजी को मिला था, लेकिन अनुकम्पा के आधार पर मिली कुर्सी को आप अधिकार समझने लगे, सच तो ये है कि आप सत्ता के लोभी हैं और कुर्सी के भी, तभी तो जब जब झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो आपने मंत्री पद मांगा, आपको मिला भी, आपने सांसद का टिकट मांगा आपको मिला, पार्टी में भी बड़ा सम्मान मिला लेकिन आपको सम्मान पचा नहीं.
सच तो ये ही कि जिस दिन हेमंत बाबू जेल से बाहर आये थे आपको नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए था और नंगे पैर चलकर हेमंत बाबू को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए था, लेकिन आप तो अंतिम समय में भी ट्रांसफर पोस्टिंग में लगे थे, असल में आपको अनुकम्पा पर मिली कुर्सी अपनी लगने लगी थी और कुर्सी का लगाव और मोह नहीं छूट पा रहा था.
जब हेमंत बाबू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो एक मुख्यमंत्री बनने के बाद भी आप मंत्री पद मांगने की जिद करने लगे, जबकि यदि आपको कुर्सी का मोह नहीं होता तो कई सीनियर नेता थे, कोल्हान में रामदास सोरेन थे, दशरथ गगराई थे, कई लोग थे जिसे आप अपना मंत्री पद दे सकते थे लेकिन आप तो मंत्री बनने के लिए नाराज तक हो गए थे, लेकिन यदि किसी ने कुर्बानी दी तो वे थे बसंत सोरेन क्यूंकि उनके शरीर में गुरूजी का खून है.
आज जब भाजपा में आपकी दाल नहीं गली, बाबूलाल मरांडी आपके जॉइनिंग का विरोध कर रहे हैं तो आप लगे हरिश्चन्द्र बनने, ऑप्शन चुनने, आपके पास एक ही ऑप्सन था जो आपने गवां दिया वो था मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी को गद्दी सौंपना और झामुमो को मजबूत करना, लेकिन अफसोस की रातोंरात आपने तो अपने घर और गांव से झामुमो का झंडा उतार कर गायब करवा दिया, लोबिन दादा को मनाने के बजाय उकसा कर गलत बयानबाजी करवा दिया. मीडिया मैंनेजमेंट के बहाने झामुमो के मजबूत और समर्पित विधायकगणों का नाम उछलवा दिया कि वे आपके साथ हैं.
हद तो तब हो गई जब कोलकाता होते हुए दिल्ली एयरपोर्ट में आप कहने लगे हम जहां हैं वही हैं. मतलब जेएमएम में हैं सरकार के साथ हैं, लेकिन जब भाजपा नेतृत्व में आपको ठुकरा दिया तो सोशल मीडिया पर चलवा दिया इमोशनल कार्ड वाला बयान. सच बोलू तो ये आपका और झामुमो का मामला हैं, लेकिन ये सरकार का भी मामला है, गठबंधन का मामला भी है, नैतिकता का मामला भी है, झारखंड की जनता से जुडा मामला है. इसलिए मैं आपको कहना चाहता हूं कि भ्रम में मत रहिये. झारखंड की जनता आपको जान चुकी है.
आप सन्यास नहीं लेंगे क्यूंकि सत्तालोभी हैं, पार्टी या सरकार का विधायक नहीं तोड़ सकते. क्यूंकि सभी मजबूती से गुरूजी और हेमंत बाबू के साथ खडे हैं, और तीसरा ऑप्सन नए साथी की तलाश तो यदि भाजपा आपको साथ लेती भी हैं तो बहुत उदाहरण है जिसने पार्टी या सरकार के साथ गद्दारी की उसका क्या हुआ?
जब विधायक दल की बैठक में गठबंधन के विधायकों का समर्थन ब्लैंक पेपर लेकर आपका नाम लिख दिया गया तब आप को नही लगा था के ये डीकटेटरशिप है, और हां एक बात और हेमंत जी के पास बसंत सोरेन जी और कल्पना सोरेन जी का ऑप्शन था पर आप पर भरोसा जताया था, लेकिन आपने सिर्फ अपने स्वार्थ, सत्ता के भूख और ईगो के कारण झारखंड का सम्मान भाजपा के हाथों गिरवी रखने का कार्य किया है जिसको झारखंड की जनता कभी माफ नहीं करेगी.
एक बात बता दे रहे कोल्हान एवं झारखण्ड की जनता, हर एक विधायक, मंत्री और INDIA गठबंधन का हर कार्यकर्त्ता गुरूजी शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन, राहुल गांधी, मल्लिकाअर्जुन खड़गे एवं गुलाम अहमद मीर जी के साथ खड़ा है. कोई कहीं नहीं जाने वाला. आपके साथ तो कभी नहीं जायेगा.
हमलोग झारखण्डी हैं, जब रिश्ता बनाते हैं तो दिल से. स्वार्थ से नहीं, आपने सिर्फ पार्टी को नहीं बल्कि झारखंड की माटी को भी धोखा दिया हैं, झारखंड के शहीदों का अपमान किया हैं, झारखंड की माटी को बेचने का कार्य किया है. इसलिए आज आप अकेले हैं, कोई ना कभी आपके साथ था ना कभी रहेगा.”
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