क्या झारखंड के 7 लाख अवैध भवन नहीं होंगे रेगुलर, पढ़िये सुप्रीम कोर्ट का आदेश
- Posted on December 18, 2024
- झारखंड
- By Bawal News
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्थानीय निकाय द्वारा पास नक्शा से हटकर हुए निर्माण और बिना नक्शा स्वीकृति के हुए निर्माण को नियमित करके ऐसा करने वालों को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता.
रांची : झारखंड सरकार शहरी निकायों में बिना नक्शा के बने करीब 7 लाख अवैध भवनों को रेगुलर करने की तैयारी कर रही है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट से आदेश से इन अवैध मकानों के वैध होने पर फिर से संकट खड़ा हो गया है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान अपने आदेश में कहा है कि अवैध भवन निर्माण को नियमित नहीं किया जा सकता. चाहे वह भवन कितना भी पुराना क्यों ना हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्थानीय निकाय द्वारा पास नक्शा से हटकर हुए निर्माण और बिना नक्शा स्वीकृति के हुए निर्माण को नियमित करके ऐसा करने वालों को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता. निर्माण के लिए नियमों का पालन किया जाना जरुरी है. अगर अदालत में ऐसे मामले आते हैं, तो अवैध निर्माण के प्रति नरमी गलत होगा.
19 नवंबर को जारी किया गया था ड्राफ्ट
राजधानी रांची समेत राज्य के शहरी ने बने 7 लाख अवैध मकानों को रेगुलर करने के लिए 8 साल पहले रघुवर सरकार ने कोशिश शुरू की थी. इसके बाद 2022 में हेमंत सरकार ने भी इस दिशा में पहल की. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश के बाद 19 नवंबर 2022 को अवैध मकानों को रेगुलर करने की योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया था. इसमें 31 दिसंबर 2019 के पहले भवनों को रेगुलर करने की बात कही गई थी. ड्राफ्ट के मुताबिक 15 मीटर की ऊंचाई तक वाले तीन मंजिला भवनों को रेगुलर किया जाएगा, वहीं 500 वर्गमीटर से कम प्लॉट का प्लिंथ क्षेत्र 100 प्रतिशत और 500 वर्गमीटर से बड़े प्लॉट का प्लिंथ क्षेत्र 75 फीसदी या 500 वर्गमीटर (दोनों में जो भी कम हो) होना चाहिए. दिसंबर 2022 तक सरकार ने इस ड्राफ्ट पर आपत्तियां और सुझाव मांगी थी.
स्टेक होल्डर्स और आम लोगों ने दी राय
दिसंबर 2022 के बाद भी सुझाव आते रहे. इस बीच अवैध निर्माण के नियमितिकरण की योजना के लिए दूसरे राज्यों की नीति का अध्ययन कर फाइनल ड्राफ्टिंग के लिए समिति बनाई गई. समिति ने दूसरे राज्यों की नीति का अध्ययन किया साथ ही स्टेक होल्डर्स से राय ली. फाइनल मसौदा तैयार कर विधि विभाग के पास मंजूरी के लिए भेजा गया है. लॉ डिपार्टमेंट के परामर्श के मुताबिक मसौदे को कैबिनेट में लाया जाना था, लेकिन अबतक फाइल अटकी हुई है. फाइनल मसौदा तैयार करने वाली समिति ने ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना के मॉडलों का अध्ययन किया है.
जानिये प्रारंभिक ड्राफ्ट में क्या था
अवैध भवनों के नियमितिकरण के लिए जो प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार किया गया था, उसमें आवासीय और गैर आवासीय मकानों को रेगुलराइज करने के लिए अलग-अलग शुल्क का प्रस्ताव था. प्रारंभिक ड्राफ्ट के मुताबिक नगर पंचायत वाले शहरों में आवासीय भवन के लिए 50 रुपये प्रति वर्ग मीटर और गैर-आवासीय के लिए 75 रुपये प्रति वर्गमीटर था. म्युनिसिपल काउंसिल (नगर पालिका परिषद) वाले इलाकों में आवासीय भवनों के लिए 75 रुपये प्रति वर्गमीटर और गैर-आवासीय भवन के लिए 100 रुपये प्रति वर्ग मीटर था. नगर निगम, विकास प्राधिकरण, नगर पालिका क्षेत्र के आवासीय भवनों के लिए 100 रुपये प्रति वर्ग मीटर और गैर-आवासीय के लिए 150 रुपये प्रति वर्ग मीटर का शुल्क तय किए जाने का प्रस्ताव किया गया था.
फाइलों में अटक गई योजना
स्टेक होल्डर्स और आम लोगों ने बिना शर्त अवैध मकानों को नियमित करने का सुझाव दिया था. लोगों ने विभाग को सीएनटी-एसपीटी एक्ट का उल्लंघन कर बने मकानों, एग्रीकल्चर लैंड और ओपन स्पेस में बने भवनों को भी रेगुलर करने का सुझाव दिया था, लेकिन यह नीति फाइलों में अटक गई. हेमंत सरकार अब अपने इस नये कार्यकाल में इस नीति को धरातल पर उतारने के लिए क्या कोशिश करती है यह देखना होगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से नये आदेश के बाद झारखंड के शहरी निकायों में बने अवैध मकानों के रेगुलर होने पर एक बार फिर संशय नजर आ रहा है.
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