जब निर्दलीय चुनाव लड़ गये थे रामदास सोरेन, ग्राम प्रधान से कैबिनेट मंत्री का सफर इतने संघर्षों से है भरा
- Posted on August 16, 2025
- झारखंड
- By Bawal News
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Ranchi: महज 10 दिन के अंदर झारखंड ने दो बड़े नेता खो दिये. पहले दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन हुआ और उनके दशकर्म के दिन झारखंड के शिक्षा मंत्री और घाटशिला से जेएमएम के विधायक रामदास सोरेन ने अंतिम सांस ली. इन दोनों नेताओं के निधन से जेएमएम को बड़ा नुकसान हुआ है. शुक्रवार रात रामदास सोरेन का निधन दिल्ली के अपोलो अस्पताल में हुआ. शनिवार सुबह उनका पार्थिव शरीर रांची लाया गया. विधानसभा में पार्थिव शरीर रखा गया, जहां राज्यपाल, स्पीकर, संसदीय कार्यमंत्री समेत कई मंत्री, विधायक और नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. राज्य सरकार ने रामदास सोरेन के निधन पर एक दिन का राजकीय शोक भी घोषित किया है. आज झारखंड में सभी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका है और कोई भी आधिकारिक समारोह आयोजित नहीं हो रहा.
संघर्षों से भरा है 44 साल का राजनीतिक सफर
62 वर्ष की उम्र में रामदास सोरेन ने दुनिया को अलविदा कह दिया. 44 साल का उनका राजनीतिक सफर संघर्षों से भरा रहा. ग्राम प्रधान से मंत्री बनने के सफर में उन्होंने काफी संघर्ष किया. अपनी सादगी से उन्होंने सबका दिल जीता. रामदास सोरेन ने एक राजनेता से ज्यादा समाजसेवी और आंदोलनकारी के रूप में अपनी छवि बनायी थी. झारखंड आंदोलन के दौरान शिबू सोरेन, सुनील महतो और सुधीर महतो जैसे नेताओं के साथ मिलकर उन्होंने संघर्ष किया था. रामदास सोरेन के जन्म 1 जनवरी 1963 को पूर्वी सिंहभूम जिले के घोराबांधा गांव में हुआ था. उन्होंने जमशेदपुर के को-ऑपरेटिव कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की. सोरेन की राजनीतिक यात्रा ग्राम प्रधान से शुरू हुई थी. घोराबांधा पंचायत का ग्राम प्रधान और धीरे-धीरे राजनीति में खुद को स्थापित किया. उन्होंने 1980 में जेएमएम के साथ अपनी राजनीतिक पारी शुरू की. वे गुड़ाबांधा पंचायत अध्यक्ष और बाद में सचिव भी बने. रामदास जमशेदपुर प्रखंड कमेटी, अनुमंडल कमेटी और एकीकृत सिंहभूम जिला में झामुमो के सचिव रहे. 10 साल से जेएमएम के पूर्वी सिंहभूम जिलाध्यक्ष रहे.
2005 में निर्दलीय चुनाव लड़ गये थे
रामदास सोरेन 2005 में जेएमएम से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव भी लड़ गये थे. उस वक्त जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन था. सीट बंटवारे में घाटशिला सीट कांग्रेस के पास चली गई थी. तब रामदास सोरेन ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप कुमार बलमुचू के खिलाफ चुनाव लड़ गये. हालांकि रामदास सोरेन चुनाव हार गये, लेकिन उन्हें 34,489 वोट हासिल हुए थे. 27.05 फीसदी वोट लाकर वे दूसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन उन्होंने इस चुनाव में यह साबित कर दिया कि उनमें दम है. इसके बाद 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले रामदास सोरेन की जेएमएम में वापसी हुई. 2009 में जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन टूट गया और दोनों पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशी उतारे. रामदास सोरेन ने जेएमएम की टिकट पर चुनाव लड़ा और इस बार उन्होंने प्रदीप बलमुचू को 1192 वोटों से चुनाव हरा दिया. 2014 के विधानसभा चुनाव में वे बीजेपी के लक्ष्मण टुडू से चुनाव हार गये, लेकिन फिर 2019 में उन्होंने चुनाव जीतकर दोबारा वापसी की. 2024 के विधानसभा चुनाव से पहले 30 अगस्त 2024 को रामदास सोरेन पहली बार जल संसाधन व उच्च शिक्षा तकनीकी मंत्री बने थे. वहीं चुनाव जीतने के बाद फिर से उन्हें कैबिनेट में जगह मिली और स्कूली शिक्षा मंत्री जिम्मेदारी सौंपी गई.
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