कितने विधानसभा सीटों पर बीजेपी को डैमेज करेंगे यशवंत ?
- Posted on September 16, 2024
- राजनीति
- By Bawal News
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विधानसभा चुनाव में यशवंत की पार्टी की हालत वैसी ही होने की संभावना है जैसी सरयू राय के संरक्षण वाली पार्टी भाजमो की लोकसभा चुनाव में हुई है.
रांची : पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा झारखंड की राजनीति में फिर से एक्टिव हो गये हैं. राजनीति के जानकार बताते हैं कि यशवंत सिन्हा की नई पार्टी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुत डैमेज करेगी, लेकिन तथ्यों पर बात करें तो यशवंत की नई पार्टी से बीजेपी को एक भी विधानसभा सीट पर नुकसान नहीं होगा. यशवंत अगर सभी 81 सीटों पर अपनी पार्टी (अटल विचार मंच) से प्रत्याशी उतारते हैं तो मुश्किल से हजारीबाग सदर विधानसभा सीट पर वे बीजेपी के कुछ वोटों पर सेंधमारी कर पाएंगे. थोड़ी-बहुत वोट वे मांडू, बड़कागांव, रामगढ़ और रांची विधानसभा सीटों पर काट पाएंगे. विधानसभा चुनाव में यशवंत की पार्टी की हालत वैसी ही होने की संभावना है जैसी सरयू राय के संरक्षण वाली पार्टी भाजमो की लोकसभा चुनाव में हुई है. बीजेपी और टीएमसी में फ्लॉप होने के बाद यशवंत ने राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी की, लेकिन आंकड़े नहीं जुटा पाए. 2019 में हजारीबाग सदर विधानसभा सीट और 2024 में हजारीबाग संसदीय सीट पर मनीष जायसवाल की जीत यह साबित करती है कि यशवंत के पुराने दिन चले गये हैं.
झारखंड में कभी बीजेपी का बड़ा चेहरा नहीं बन पाये
यशवंत सिन्हा जबतक बीजेपी में थे वे बीजेपी एक बड़े नेता के रूप में जाने जाते थे. यशवंत केंद्र में मंत्री रहे. राष्ट्रीय संगठन में उनका प्रभाव था, लेकिन प्रदेश की राजनीति में शुरू से ही दूर रहे. हजारीबाग लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर दिल्ली की राजनीति में व्यस्त रहे. जबतक सांसद-मंत्री रहे सिर्फ हजारीबाग के लोकल मुद्दों पर फोकस किया. झारखंड के बड़े मुद्दों को लेकर कभी मुखर नहीं रहे. उनके आसपास सिर्फ इंटेलेक्चुअल लोगों की भीड़ रही और इसी केटेगरी के वोटर्स के बीच पकड़ बना पाए. राज्य के बहुसंख्यक आदिवासी-मूलवासी तबके के बीच उनकी कोई पहचान नहीं बन पाई. बीजेपी से अलग होते ही उनका राजनीतिक करियर ढलान पर चला गया. यशवंत सिन्हा 86 वर्ष के हो चुके हैं. इस उम्र में वे जिस जोश के साथ बीजेपी को चुनौती देने के लिए चुनाव के मैदान में उतरे हैं वह वाकई काबिलेतारीफ है, लेकिन 81 सीटों पर चुनाव लड़ने की हवा-हवाई बातें करने के बजाए अगर वे अपनी पकड़ वाले एकाध विधानसभा सीटों पर मेहनत करते तो शायद बीजेपी को नुकसान पहुंचा पाते.
चुनाव लड़ने के लिए ऐसे प्रत्याशी जुटायेंगे
यशवंत सिन्हा ने कुछ लोगों के साथ मिलकर नई पार्टी तो बना ली है. कुछ मुद्दे भी रख लिये हैं. यह भी कहा है कि उनकी पार्टी स्वयंसेवी संगठन या चंदा वसूली वाली पार्टी नहीं है. चंदा वसूले बिना ही 81 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. यशवंत के पास सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए अभी चेहरे नहीं हैं. वे कुछ नये और कुछ पुराने चेहरों की तलाश में हैं. बीजेपी को टक्कर देने के लिए यशवंत अब वहां के बागियों को अपने पाले में करने की कोशिश करेंगे. टिकट बंटवारे के समय बीजेपी समेत अन्य दलों ने भगदड़ मचेगी. टिकट कटने से नाराज कई नेता यशवंत के साथ जा सकते हैं, हालांकि चुनाव जीतने की चाहत रखने वाले नेता यशवंत की पार्टी की बजाए दूसरे बड़े दलों को प्राथमिकता में रखेंगे, कहीं सेटिंग नहीं हुई तो यशवंत के साथ जा सकते हैं. उन्होंने समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन करने का भी विकल्प उन्होंने खुला रखा है, लेकिन समान विचारधारा वाली पार्टी का मिलना मुश्किल दिख रहा है. यशवंत सिन्हा ने अपनी पार्टी का नाम अटल विचार मंच रखा है. जाहिर है कि अटल जी की विचारधारा वाली पार्टी कांग्रेस-झामुमो-झामुमो और वाम दलों से तो दूरी बनाकर रहेगी. अब राष्ट्रीय पार्टी में बची बीजेपी. यशवंत कह रहे हैं कि बीजेपी दिशा भटक चुकी है. इसलिए बीजेपी से भी गठबंधन मुश्किल है. कुल मिलाकर यशवंत के सामने चुनौतियों का पड़ाह खड़ा है. देखना दिलचस्प होगा कि वे इन चुनौतियों से लड़कर कैसे अपनी पार्टी को खड़ा करते हैं.
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