हिल गई थी बिहार की पूरी सरकार, जब आईपीएस कुणाल ने क्रब से निकाल ली थी बॉबी की लाश
- Posted on December 29, 2024
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- By Bawal News
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बॉबी हत्याकांड, ऐसा केस, जिसके बारे में किसी थाने में कोई मामला दर्ज नहीं था. सिर्फ दो अखबारों में जब महिला की संदेहास्पद मौत की खबर आई तो आईपीएस किशोर कुणाल ने शव को कब्र से निकलवा कर जांच शुरू कर दी. ऐसी जांच कि उसकी आंच राजनीतिक गलियारे तक पहुंच गई.
बला की खूबसूरत एक महिला की रहस्यमयी मौत ने 41 साल पहले बिहार में सरकार को संकट में डाल दिया था. जिसकी मौत को छिपाने में पूरी सरकार और पूरा सिस्टम लग गया था. साल था 1983 और तारीख थी 11 मई. सुबह जब अखबार लोगों के हाथों में गई तो फ्रंट पेज पर छपी एक खबर ने सबको चौंका दिया. यह खबर थी बिहार विधानसभा में काम करने वाली एक लड़की बॉबी के रहस्यमयी मौत की. दो प्रमुख अखबारों ने इस खबर को छापा और दावा किया कि बॉबी की संदिग्ध मौत हुई है और लाश को कहीं छिपा दिया गया है. इसके बाद तो बिहार में सियासी तूफान आ गया. क्योंकि बॉबी कोई साधारण महिला नहीं थी. वह थी कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और विधान परिषद की तत्कालीन सभापति राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी, जिसका नाम था श्वेता निशा त्रिवेदी. जो बाद में बेबी और फिर बॉबी के नाम से जानी जाने लगी. आप सोच रहे होंगे कि आखिर 41 साल बाद बॉबी की रहस्मई मौत की चर्चा क्यों. चर्चा इसलिए क्योंकि इस केस के सच को सामने लाने और दूध का दूध और पानी का पानी करने पर एक आईपीएस ऑफिसर अड़ा हुआ था. जिसने बॉबी की लाश को कब्र से बाहर निकालकर पटना से दिल्ली तक की राजनीति में खलबली मचा दी थी. यह आईपीएस ऑफिसर थे किशोर कुणाल, जो उस वक्त पटना के सीनियर एसपी के पद पर थे. आज सुबह आचार्य कुणाल किशोर का निधन हो गया है. महावीर मंदिर न्यास के अध्यक्ष, राम मंदिर पर रिसर्च जैसे कुछ ऐसे काम थे जो किशोर कुणाल की शख्सियत को बयां करते हैं, लेकिन एक कड़क और ईमानदार आईपीएस के रूप में वे आज भी काफी मशहूर हैं.
आपको बताते हैं इस केस से जुड़ी तमाम बातों, तथ्यों और चर्चाओं के बारे में. कैसे एसएसपी कुणाल पहुंच गये थे सच के करीब. कैसे तफ्तीश को आगे बढ़ाते हुए कुणाल एक-एक परत खोलते गये. तो फिर वापस चलते हैं 11 मई 1983 में जब इस किस्से की शुरुआत हुई थी. बॉबी की मौत उसके बाद शव को 4 घंटे के अंदर दफना देने की खबर. यह खबर पढ़ते ही एसएसपी कुणाल ने मामले की जांच के आदेश दे दिये. जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी पुलिस पर दबाव बढ़ने लगा. तफ्तीश आगे बढ़ते-बढ़ते कई रसूखदारों के नाम जुड़ते गये. साल 2021 में कुणाल ने पब्लिश हुई अपनी किताब 'दमन तक्षकों का'. में कुणाल ने इस केस को लेकर कई खुलासे किए. उन्होंने सबसे पहले बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज दास से पूछताछ की. दास ने उन्हें बताया कि 7 मई की शाम बॉबी अपने घर से निकली और फिर देर रात वापिस आई. घर आते ही उसने पेट में दर्द की शिकायत की. जल्द ही उसे खून की उल्टियां होने लगी. जल्दबाज़ी में उसे पटना मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. और इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया. इसके बाद उसे घर भेज दिया गया जहां उसकी मौत हो गई. इस दौरान पुलिस बॉबी की मौत की दो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, जिससे यह शक गहरा होने लगा कि मामले में कुछ गड़बड़ जरूर है. बॉबी की मौत की पहली रिपोर्ट में कहा गया था कि मौत की वजह इंटरनल ब्लीडिंग है. वहीं दूसरी रिपोर्ट में कहा गया था कि बॉबी की मौत हार्ट अटैक से हुई है. एक में मौत का वक्त सुबह के 4 बजे लिखा था, तो दूसरी में साढ़े चार बजे. अब सच्चाई जानने के लिए कुणाल ने कोर्ट से इजाजत लेकर कब्र से बॉबी की लाश निकलवाई और पोस्टमार्टम करवाया. इस तीसरे पोस्मार्टम रिपोर्ट में कुछ और ही निकला. विसरा की जांच में 'मेलेथियन' नाम का जहर पाया गया. इसके बाद पुलिस ने हत्या के बिंदुओं पर तहकीकात शुरू कर दी. यह पता लगाया जाने लगा कि आखिर बॉबी को किसने और क्यों जहर दी.
पुलिस अब बॉबी, उसके किरदार और उसके संपर्क वालों के बारे में पता लगाने लगी. पता चला कि बॉबी का कई रसूखदार और राजनीतिक लोगों से मिलना-जुलना था. विधानसभा में नौकरी के दौरान उसकी कई नेताओं और विधायकों से जान-पहचान हो गई थी. इसके बाद फिर से कुणाल एक बार और बार बॉबी की मां से मिलने उनके सरकारी आवास पहुंचे. सरकारी आवास से सटे आउट हाउस में दो लड़के रहते थे. पुलिस ने संदेह के आधार पर दोनों को उठा लिया. पूछताछ के दौरान दोनों ने एक और खुलासा कर दिया. बताया कि 7 मई की रात वहां बॉबी से मिलने के लिए एक आदमी आया था, जिसका नाम था रघुवर झा. रघुवर झा कांग्रेस की एक बड़ी नेता राधा नंदन झा का बेटा था. अपनी किताब में कुणाल ने लिखा है कि बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज दास का कहना था कि रघुवर झा ने बॉबी को एक दवाई दी थी. जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और बाद में उसकी मौत हो गई. अब केस में एक बड़े नेता के बेटे का नाम आने के बाद मामला हाई प्रोफाइल बन गया. पुलिस की जांच जैसे -जैसे आगे बढ़ी सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचने लगा. इस केस से जुड़ी खबरें अब पटना के साथ-साथ दिल्ली के अखबारों की भी सुर्खियां बनने लगी. धीरे-धीरे इस केस में और कई लोगों का नाम जुड़ा. विपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री आरोपियों को न पकड़ने के लिए पुलिस पर दबाव डाल रहे हैं. विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर, इस मामले में बार-बार CBI जांच की मांग कर रहे थे. इसी दौरान एक दिन कुणाल के पास सीधे तात्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा का कॉल आया. सीएम ने उनसे पूछा, ये बॉबी कांड का मामला क्या है. तब कुणाल ने उन्हें जवाब दिया, सर कुछ मामलों में आपकी छवि अच्छी नहीं है, लेकिन चरित्र के मामले में आप बेदाग हैं, इस केस में पड़िएगा तो यह ऐसी आग है कि हाथ जल जाएगा. इसलिए कृपया इससे अलग रहें. किताब के अनुसार जवाब सुनकर मुख्यमंत्री ने फोन रख दिया था. इस बीच इस मामले को लेरक 45 से अधिक विधायक और मंत्रियों की एक टीम मुख्यमंत्री से मिली. सरकार बचाने के लिए जग्गनाथ मिश्र प्रेशर में आ गए. और 25 मई को ये केस CBI को सौंप दिया गया.
सीबीआई को केस सौंपा तो गया, लेकिन सीबीआई का कोई अधिकारी जांच करने पटना नहीं पहुंचा. दिल्ली से ही एक रिपोर्ट तैयार कर दी गई. रिपोर्ट में कहा गया कि मामला क़त्ल का नहीं बल्कि खुदकुशी का है. रिपोर्ट के अनुसार बॉबी अपने प्रेमी से मिले धोखे से परेशान थी. इसलिए उसने सेंसिबल नाम का टेबलेट खा लिया था. सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी जिक्र किया कि मरने से पहले बॉबी ने अपने प्रेमी को एक पत्र भी लिखा था. इस रिपोर्ट के मुताबिक रघुवर झा निर्दोष था. और घटना के दिन वो एक शादी में शिरकत करने गया था. CBI ने पटना पुलिस पर भी आरोप लगाया कि उन्होंने उन दो लड़कों को टॉर्चर किया, उन्हें रघुवर झा की फोटो दिखाई और उनसे उसका नाम लेने को कहा. CBI रिपोर्ट के अनुसार बॉबी ने जो खत लिखा था वो उसकी मां ने जला दिया. और भी काफी दस्तावेज जलाए गए ताकि बड़े लोगों का इस केस में नाम ना आए.
सीबीआई की इस रिपोर्ट ने फिर बिहार की राजनीति को गर्म कर दिया. तब पटना की पटना की फॉरेंसिक लैब की ओर से CBI की रिपोर्ट पर सवाल उठाए गए. लैब के मुताबिक पोस्टमार्टम में सेंसिबल टैबलेट का कोई अंश नहीं था. और बॉबी की मौत 'मेलेथियन' जहर से हुई थी. इस पर CBI ने कहा कि गलती से लेबोरेटरी में रखे किसी दूसरे विसरा से बॉबी के विसरा में मेलेथियन चला गया होगा और फिर इसे आत्महत्या का केस बताकर केस बंद कर दिया. किशोर कुणाल हमेशा कहते रहे कि उनकी नज़र में ये एक मर्डर केस था. आज भी जब बॉबी केस की चर्चा होती है तो किशोर कुणाल के बारे में लोग भी कहते हैं कि भाई IPS देखा लेकिन कुणाल साहब जैसा नहीं देखा, कब्र से ही लाश निकाल ली थी. भले ही वे इस केस को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके, लेकिन किशोर कुणाल ने इतना तो साबित कर ही दिया कि एक पुलिसवाला चाहे तो उलझे से उलझे केस की बखिया उधेड़ कर रख दे.
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