अर्जुन मुंडा लड़ेंगे खिजरी से विधानसभा चुनाव !, बाबूलाल भी तलाश रहे सेफ सीट

राज्य की सभी 5 आदिवासी सुरक्षित लोकसभा सीटें हारने के बाद पार्टी के आदिवासी नेता अपनी तय विधानसभा सीटों से भागते नजर आ रहे हैं.

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रांची : झारखंड में भाजपा के आदिवासी लीडर्स आदिवासी सुरक्षित सीटों से विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को पार्टी खरसावां विधानसभा सीट से चुनाव लड़वा सकती है, लेकिन खूंटी लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद मुंडा सेफ सीट की तलाश में हैं. मुंडा खरसावां से विधानसभा चुनाव लड़कर विधायक से मुख्यमंत्री पद तक पहुंच चुके हैं, लेकिन 2014 में मुंडा यहां झामुमो प्रत्याशी दशरथ गगराई से चुनाव हार गये थे. दशरथ अभी खरसावां के सीटिंग विधायक हैं. मुंडा अपने राजनीतिक करियर को बचाने के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. इस वजह से वे रांची लोकसभा के अंदर आने वाले खिजरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. ऐसे कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि अर्जुन मुंडा इन दिनों खिजरी विधानसभा क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं. हाल ही में उन्होंने खिजरी विधानसभा के सभी मंडलों के अध्यक्षों के साथ बैठक भी की थी. चर्चा यह भी है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी इस बार सेफ सीट तलाश रहे हैं.


कोल्हान या संथाल की किसी एसटी रिजर्व सीट से चुनाव लड़ सकते हैं बाबूलाल


बाबूलाल मरांडी जिस राजधनवार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं वह जनरल सीट है. भाजपा की नजर राज्य के 28 आदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीटों पर है. बाबूलाल मरांडी प्रदेश में भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं. इसलिए केंद्रीय नेतृत्व उन्हें किसी आदिवासी सुरक्षित सीट से ही चुनाव लड़वाएगी, भाजपा के अंदर चर्चा है कि बाबूलाल मरांडी को संथाल परगना या कोल्हान प्रमंडल के किसी आदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाया जाएगा.


आदिवासी सुरक्षित सीटों से क्यों भाग रहे आदिवासी नेता ?


लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 5 आदिवासी सुरक्षित लोकसभा सीटें भाजपा के हाथों से निकलने के बाद पार्टी के आदिवासी नेता अपनी तय विधानसभा सीटों से भागते नजर आ रहे हैं. भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया कि राज्यसभा सांसद और लोकसभा चुनाव में लोहरदगा लोकसभा सीट से चुनाव हार चुके समीर उरांव को संगठन बिशुनपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़वा सकती है. समीर बिशुनपुर से विधायक भी रह चुके हैं, लेकिन इस बार वे यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व मेयर आशा लकड़ा को मांडर या गुमला सीट से उतारा जा सकता है, लेकिन आशा चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं हैं.


कहीं ये हेमंत का डर तो नहीं ?


एक नेता ने बताया कि जमीन घोटाले में ईडी की कार्रवाई और हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद स्थितियां काफी बदल गई है. इस प्रकरण के बाद आदिवासी समुदाय में हेमंत सोरेन और झामुमो के प्रति सहानुभूति काफी बढ़ गई है. जेल से बाहर आने के बाद जब हेमंत सोरेन शिबू सोरेन के अवतार में आदिवासी जनता के बीच पहुंचे हैं तो उनकी लोकप्रियता और बढ़ी है. लोकसभा चुनाव में आदिवासी सुरक्षित विधानसभा सीटों पर भाजपा को मिले वोटों की संख्या से भी आदिवासी नेता चिंतित हैं.

 

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