जेएमएम-कांग्रेस का तो क्लीयर हो गया, बीजेपी कबतक बिना कप्तान खेलेगी ?

झामुमो के बाद कांग्रेस ने अपने दल के नेता का चयन विधानसभा के पहले सत्र में ही कर लिया. कांग्रेस के अंदर काफी मतभेद था इसके बावजूद पार्टी ने बेहतर तरीके से अपने विधायकों को सरकार और संगठन में एडजस्ट कर दिया. बीजेपी के अंदर कोई मतभेद नहीं है. फिर भी आखिर क्यों बीजेपी अपने विधायकों का लीडर चुनने में देर कर रही है ?

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रांची : झारखंड के विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती खड़ी है. सत्ता पक्ष ने इस चुनौती को पार कर लिया है, लेकिन विपक्ष अबतक इस चुनौती से जूझ रहा है. जी हां अपने विधायकों को सीनियरिटी के मुताबिक सरकार या संगठन में पद देने की चुनौती झामुमो और कांग्रेस ने पार कर ली है. कैबिनेट में मंत्री पद के बंटवारे के बाद सत्ता पक्ष के कई विधायक नाराज हो गये. कांग्रेस और जेएमएम ने अपने वरिष्ठ और नाराज विधायकों को संगठन में ही बड़ा पद देकर उनकी नाराजगी को खत्म कर दिया, लेकिन बीजेपी अबतक सोच में ही डूबी हुई है कि आखिर सदन में विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा.

 

कांग्रेस ने सूझबूझ से बचाया अपना घर

 

हेमंत सोरेन के कैबिनेट गठन के बाद सत्ता पक्ष में खास कर कांग्रेस के विधायकों के अंदर का असंतोष और उनकी नाराजगी सामने आने लगी. दूसरी पार्टी से कांग्रेस में आये राधाकृष्ण किशोर के साथ-साथ युवा विधायक शिल्पी नेहा तिर्की और इरफान अंसारी को सरकार में कांग्रेस की ओर से मंत्री पद दिया गया. इसके बाद से विधायक प्रदीप यादव, अनुप सिंह, राजेश कच्छप जैसे नेताओं की नाराजगी की खबरें आने लगी. राजेश कच्छप ने तो चेतावनी भी दे दी कि अगर मंत्री ठीक से काम नहीं करेंगे तो पार्टी नेतृत्व के पास चिट्ठी-पत्री भी करेंगे. बगवात की चिंगारी और भड़कती उससे पहले ही कांग्रेस इसका हल निकाल लिया और प्रदीप यादव को विधायक दल का नेता, राजेश कच्छप को उप नेता और अनुप सिंह को मुख्य सचेतक बना दिया. उधर झामुमो ने भी अपने सीनियर विधायक मथुरा महतो को दल का मुख्य सचेतक बना दिया.

 

किसी इंपोर्टेड का हो रहा क्या इंतजार ?

 

झारखंड में बीजेपी के 21 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. सीनियर नेताओं में बाबूलाल मरांडी, सीपी सिंह, चंपई सोरेन, राज सिन्हा, सत्येंद्रनाथ तिवारी और नीरा यादव विधायक बनकर सदन पहुंचे हैं, लेकिन विधानसभा को पार्टी की ओर से विधायक दल के नेता का नाम नहीं दिया गया है. चंपई सोरेन तो कह चुके हैं कि वे नेता प्रतिपक्ष की रेस में नहीं है, वहीं पार्टी के दूसरे विधायक कह रहे हैं कि इस बार 21 विधायकों में से ही कोई एक नेता प्रतिपक्ष होगा. कोई विधायक इंपोर्ट नहीं होगा. फिलहाल सदन के बाहर और अंदर बाबूलाल मरांडी ही अपने विधायकों को लीड कर रहे हैं, लेकिन उनके पास प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी है. सूत्रों के हवाले से खबर है कि बाबूलाल मरांडी जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष पद से मुक्त होकर विधायक दल के नेता बन सकते हैं या फिर वरिष्ठ विधायक सीपी सिंह का नाम नेता प्रतिपक्ष के लिए भेजा जा सकता है.

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