मेडलों का हिसाब करें या रोटियों का जुगाड़
- Posted on December 19, 2024
- झारखंड
- By Bawal News
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स्टेट और नेशनल चैंपियनशिप में झारखंड को कई मेडल और ट्रॉफियां दिलाने वाली रेसलर मधु तिर्की का उत्साह अब कम होता जा रहा है. तभी तो वो कहती हैं मेडल से घर तो नहीं चलने वाला.
मेडल तो इतने हैं कि हाथ में पकड़ा भी नहीं जाता, लेकिन मेडल से घर तो नहीं चलने वाला. यह कहना है रांची की रेसरल मधु तिर्की का. रांची की इस आदिवासी बेटी ने कुश्ती में झारखंड को कितने मेडल दिलाये हैं वो भी उसे याद नहीं. जब कुश्ती में सिर्फ मर्दों का डंका बजता था, तब मधु और उसकी बड़ी बहन राखी ने रेसलिंग की दुनिया में कदम रखा और रांची से दिल्ली तक अपनी हुनर का लोहा मनवाया था. स्टेट और नेशनल लेवल के कई रेसलिंग चैंपियनशिप में राज्य को सिल्वर, गोल्ड, ब्रांज मेडल दिलाये. सैकड़ों ट्रॉफियां जीतकर लाईं. झारखंड और झारखंड की बेटियां का मान बढ़ाया. राष्ट्रीय खेलों में जीते गए जिन मेडलों पर कभी प्रदेश गौरवान्वित हुआ था वह मेडल मधु के घर की दीवारों पर सजे नहीं नजर आते. बेतरतीब से घर के कोनों और बोरियों में भरकर यह मेडल रखे हुए हैं. ट्रॉफियां धूल फांक रही है. वह इसलिए क्योंकि रिंग के अंदर और रंग के बाहर दोनों जगह मधु और उसके परिवार का संघर्ष जारी है. ये दो वक्त की रोटियों का जुगाड़ करें या मेडलों का हिसाब और आखिरकार मेडलों पर रोटियां भारी पड़ गई, क्योंकि मेडलों और ट्रॉफियों से घर नहीं चलता.
साल 2015-16 का वो समय था जब नौंवी में पढ़ने वाली गरीब आदिवासी बेटी मधु और उसकी बड़ी बहन राखी ने रेसलिंग की दुनिया में कदम रखा था. उस वक्त रांची में महिला कुश्ती की कोई टीम भी नहीं थी. मघु और उसकी बहन राखी ने पहले स्टेट और फिर नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में राज्य को कई मेडल दिलाये. गरीब मां-बाप ने हड़िया-दारू और बकरी बेचकर बेटियों का सपना पूरा करने के लिए अपनी इच्छाओं की आहूति दे दी. बेटियों ने भी कड़ी मेहनत कर राज्य का नाम रोशन किया. इनका शानदार प्रदर्शन देखने के बाद 2016 में हेमंत सोरेन (तात्कालीन नेता प्रतिपक्ष) मधु के घर पहुंचे. हेमंत सोरेन ने मधु का हौसला बढ़ाया और परिवार को हर संभव सरकारी सहायता का आश्वासन दिया. करीब 1 लाख रुपये प्रोत्साहन राशि भी मिली. फिर 2020 में भी हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बनने के बाद मधु के घर पहुंचे और हौसला बढ़ाया, लेकिन सरकार के तरफ से प्रोत्साहन राशि नहीं मिली. गरीब आदिवासी परिवार की बेटियां प्राइवेट नौकरी और रेसलिंग की कोचिंग देकर अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटियों का जुगाड़ कर रही है. साथ ही अभावों के बीच कुश्ती खेलकर झारखंड का नाम रौशन कर रही हैं.
कुश्ती के दांव-पेंच में माहिर मधु सिस्टम के दांव-पेंच से अबतक जीत नहीं सकी है. कई बार फाइनेंशियल सपोर्ट के लिए सरकार का दरवाजा खटखटाने के बाद भी अबतक निराशा ही हाथ लगी है. झारखंड को महिला कुश्ती में पहचान दिलाने वाली मधु और उसके परिवार को सरकार से मदद और प्रोत्साहन की दरकार है. अभावों और गरीबी के कारण आज जिस तरह इनके घर में रखे मेडल और ट्रॉफियां अपनी हालत पर रो रही हैं, कहीं ऐसा न हो मधु की प्रतिभा भी अभावों के आगे दम न तोड़ दे और झारखंड एक होनहार महिला पहलवान को रिंग से खो न दे.
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