6 साल में 6 सीएम बनाने वाले पीके के हाथ लगा जीरो बटा सन्नाटा, 98% जन सुराज कैंडिडेट की जमानत जब्त

The verdict in Malegaon blast case came after 17 years, all 7 accused including Sadhvi Pragya Thakur were acquitted, BJP said Congress should answer saffron terrorism (3)-jM6QRvOGCS.jpg

इतना आसान नहीं है वोटर्स का मिजाज पढ़ना, खास कर जब मतदाता हो बिहार का और वोटर्स का यही मिजाज नहीं भाप पाये प्रशांत किशोर. तभी तो 6 साल में 6 मुख्यमंत्री बनाने वाले इतने बड़े राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक सीट के लिए तरस गये. बिहार की जनता ने जनादेश दे दिया एनडीए को प्रशांत किशोर के हाथ आया जीरो बटा सन्नाटा. चुनाव से पहले प्रशांत किशोर जितने कॉन्फिडेंस में थे और जिस तरह नेशनल मीडिया उन्हें हाथो-हाथ ले रही थी. सोशल मीडिया पर जिस तरह प्रोफेशनल्स की टीम जनसुराज के लिए काम कर रही थी और बिहार से दिल्ली तक प्रशांत किशोर ने जो माहौल बनाया था उसे देखकर यह नहीं लगा था कि कई मुख्यमंत्री बनाने वाले प्रशांत इतनी बुरी तरह मात खाएंगे. जनसुराज से बेहतर प्रदर्शन तो असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने की. जनसुराज ने 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से 233 यानी करीब 98 फीसदी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. अपने घर में भी प्रशांत किशोर जमानत नहीं बचा पाए. रोहतास जिले की सभी 7 सीटों पर पीए के कैंडिडेट की जमानत जब्त हो गई.
 
6,000 किमी पैदल यात्रा का नतीजा शुन्य

जनसुराज के गठन से पहले प्रशांत किशोर ने 5 मई 2022 से 2 अक्टूबर 2024 तक 6 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की. इस दौरान वे 5 हजार गांवों तक पहुंचे और इतनी ही सभाएं की. बिहार चुनाव से पहले वोटर्स का मिजाज पढ़ने के लिए पीके 1,280 दिन तक बिहार की खाक छानते रहे, लेकिन नतीजा शुन्य रहा. 1 करोड़ से ज्यादा सदस्यों का दावा करने वाली जनसुराज पार्टी को 10 लाख वोट भी नहीं मिले. विधानसभा चुनाव के प्रचार में जब पीके कूदे तो उन्होंने अपने इंटरव्यू में कई बड़े-बड़े दावे किये. कहा था कि JDU 25 से अधिक सीटें नहीं जीत पाएगी और नीतीश अब मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. उन्होंने यह भी कहा था कि अगर नीतीश सीएम बने तो वे राजनीति छोड़ देंगे. पीके के सारे दावे फेल हो गये. एनडीए ने पिछली बार से अच्छा प्रदर्शन करते हुए प्रचंड बहुमत हासिल किया. तो क्या अब पीके राजनीति छोड़ देंगे.

प्रशांत किशोर के दावे फेल

प्रशांत किशोर चुनाव से पहले यह दावा करते दिखे थे कि इस बार महागठबंधन लड़ाई में नहीं है.  लड़ाई NDA और जनसुराज के बीच है, लेकिन जब नतीजे आये तो जनसुराज ही लड़ाई में नजर नहीं आया. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक प्रशांत किशोर के हार के कई कारणों में से एक यह भी है कि उन्होंने उम्मीदवारों का चयन ठीक से नहीं किया. साफ-सुथरी राजनीति करने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर ने स्वचछ छवि वाले लोगों को टिकट देने की बात कही थी, लेकिन दे दिया अपराधियों को टिकट. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक जनसुराज के 231 प्रत्याशियों में से 108 पर क्रिमिनल केस हैं. प्रशांत किशोर बिहार की राजनीतिक लड़ाई सोशल मीडिया और आईटी प्रोफेशनल्स की टीम लेकर लड़ने निकले थे, लेकिन ओवर कॉन्फिडेंस ने उनका बस्ता बंधवा दिया.

जन सुराज के हारने के 5 प्रमुख कारण

महिलाओं को नहीं जोड़ सके: एनडीए ने आधी आबादी पर फोकस किया और चुनाव जीत लिया, लेकिन पीके महिला वोटरों को एनडीए से नहीं तोड़ सके, सरकारी योजनाओं ने उन्हें बांधे रखा. एनडीए ने महिलाओं को पूरी तरह अपने पक्ष में कर लिया. वहीं जन सुराज के शराबबंदी खत्म करने की बात भी महिलाओं को पसंद नहीं आई.

ग्रामीण पहुंच और जागरूकता की कमी: बिहार की 90% आबादी ग्रामीण, लेकिन पार्टी का प्रचार शहरी/डिजिटल तक सीमित. ग्रामीण बूथों पर सिंबल और उम्मीदवार दोनों अपरिचित. वोट बैंक बिखरा.

संगठन की कमजोरी और बूथ स्तर पर शून्य नियंत्रण: अंतिम समय तक बीएलए बनाने में हड़बड़ी, कई बूथों पर प्रतिनिधि अनुपस्थित. टिकट वितरण में पैराशूट उम्मीदवारों से स्थानीय नाराजगी, आधा दर्जन उम्मीदवारों ने नाम वापस लिया या बैठ गए.

बीजेपी की 'बी-टीम' छवि: विपक्ष ने एनडीए वोट काटने वाली स्पॉइलर पार्टी बताकर संदेह पैदा किया, सोशल मीडिया पर नकारात्मक प्रभाव.

सोशल मीडिया पर अधिक निर्भरता: ऑनलाइन हाइप ग्रामीण क्षेत्रों में वोट नहीं बदला. इंफ्लुएंसर्स की पहुंच सीमित, युवा उत्साह फीका.

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